हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का रखा जाता है ऐसा माना जाता है कि यह व्रत माताएं अपने बच्चों की लंबी आयु के लिए रखती हैं जिस प्रकार करवा चौथ का व्रत पति की लंबी आयु के लिए करते हैं वैसे ही अहोई अष्टमी के इस व्रत को बच्चों के लिए व बच्चों की लंबी आयु के लिए किया जाता है इस व्रत को भी माताएं निर्जला ही रखते हैं ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से बच्चों की आयु लंबी होती है इसी कारण यह व्रत रखा जाता है
तारीख | Date | 24 अक्टूबर, 2024 | 24 October 2024 |
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तिथियां | Day | गुरुवार | Thursday |
मान्यताओं के अनुसार यह व्रत माताएं अपनी संतान के लिए करती हैं वैसे तो ऐसा माना जाता है कि यह व्रत केवल पुत्रों की लंबी आयु के लिए और उसके उज्जवल भविष्य की कामना के लिए ही किया जाता है किंतु आज समय काफी बदल गया है माता-पिता लड़के व लड़कियों में भेदभाव नहीं करते इसीलिए माता इस व्रत कोलड़के व लड़कीदोनों के लिए ही करते हैंखाने का सही अर्थ यह है कि यह व्रत बच्चों की लंबी आयु के लिए ही रखा जाता हैइस दिन हुई माता की पूजा की जाती हैऔर यह व्रत अहोई माता को समर्पित होता हैइस व्रत को हुए माताएं भी करती हैंजिनके संतान होती है और भी माताएं भी करती है जिनके संतान नहीं होती वह माताएं संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैंकुछ माताएं तो इस व्रत कोपुत्र प्राप्ति के लिए करती हैं
जैसा कि हम सभी जानते हैं अहोई अष्टमी व्रत पुत्रवती महिला द्वारा किया जाने वाला उपवास है यह पर्व भारत के उत्तर राज्यों में मनाया जाता है इस व्रत काखास महत्व यह है किइस व्रत को खोलने के लिए तारों को आज दिया जाता है क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन चंद्रमा रात में देर से दिखाई देता है इसीलिए यह व्रतआकाशमें तारों को देखने के बाद तारों को वर्ग देकर किया जाता हैऔर इस व्रत का खास महत्वयह भी है कि इस व्रत को महिलाएं करवा चौथ के व्रत की तरह ही रखती हैंजिस प्रकार करवा चौथ का व्रत निर्जला रखा जाता है उसी प्रकार यह व्रत भी निर्जला ही रखा जाता है ताकि अहोई माता और माता पार्वती अपनी कृपा और आशीर्वाद सदैव उनके बच्चों परबनाए रखती हैं इसीलिए इस व्रत में माता पार्वती और अहोई माता की पूजा की जाती है
(1) अहोई अष्टमी के दिन भगवान गणेश की पूजा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि किसी भी पूजा कोजब भी हम शुरू करते हैं तो सबसे पहले विघ्नहर्ता की पूजा की जाती है इसीलिए पूजा करने से पहले गणेश जी का आवाहन अवश्य करें
(2) इस दिन तारों को देखकर ही व्रत खोला जाता है और अहोई माता की पूजा की जाती है
(3) इस दिन कथा सुनते समय हाथ में अनाज लेना शुभ माना जाता है पूजा के बाद यह अनाज किसी गाय को खिलाना चाहिए
(4) याद रखें जब आप पूजा कर रही हैं तो अपने बच्चों को साथ में अवश्य बिठा ले
(5) इसके बाद अहोई माता को भोग लगाकर बच्चों को प्रसाद अवश्य खिलाएं
(6) अहोई व्रत में आपकी जितनी संतान है उनके नाम से माला पहनते हैं जिसमें अहोई माता की तस्वीर होती है
(7) पूरे दिन व्रत के बाद शाम को तारों को आज देकर व्रत संपूर्ण करें
(8) उसके बाद कैलेंडर के समक्ष बैठकर कथा सुनी औरपूजा संपन्न करेंऔर अपने बच्चों की तिलक करकेउनके उज्जवल अहोई माता से कामना करें
प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था उसके 60000 पुत्र और बहुएं व एक बेटी थी एक दिन साहूकार की बहुएं और बेटी आंगन लीपने के लिए जंगल से मिट्टी लेने गई मिट्टी खोदते समय साहूकार की जो बेटी थी इस बेटी के हाथों से सियायु माता के बच्चे खुरपी से कट गए और उनकी मौत हो गई यह सब देखकर सियायु माता नाराज हो गई और बोली जिस तरह तूने मेरे बच्चे मारे है इस तरह मैं तुम्हें भी निसंतान कर दूंगी अर्थात मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी यह सुनकर साहूकार की बेटी डर गई और अपनी सभी भाभियों से कोख बंधवाने को कहने लगी किंतु उसकी सभी भाभियों ने मना कर दिया लेकिन सबसे छोटी भाभी ने अपनी को बंधवाने की स्वीकृति दे दी क्योंकि उसकी ननद कुंवारी थी उसकी शादी नहीं हुई थी इसी वजह से छोटी बहू ने अपनी को बंधवाने की स्वीकृति दी तभी से छोटी बहू के जो भी संतान होती वह सात दिनों के भीतर मर जाती
हर साल सभी बहुएं जहां अहोई अष्टमी का व्रत करती और कथा सुनती और अपने बच्चों के लंबी उम्र की कामना करती वहीं दूसरी ओर छोटी बहू अपने घर में ही रोया करती ऐसे ही समय बितता गया एक दिन पंडित को बुलवाया गया और इसका समाधान पता लगाया गया पंडित बोला इस श्राप से मुक्ति के लिए तुम्हें सुरई गाय की सेवा करनी होगी उसके कहने पर यदि सियायु माता तुम्हारी कोख को छोड़ दे तो तुम्हारे बच्चे जीवित रह पाएंगे ऐसा सुनकर छोटी बहू ने सुरई गाय की पूजा प्रारंभ कर दी वह प्रतिदिन उठकर गाय की सेवा में लग जाती है गाय का गोबर से लेकर उसको चारा खिलाने तक के सारे काम वह रोज करती तब सुरई गाय ने सोचा यह है मेरी कौन इतनी सेवा कर रहा है देखती है कि साहूकार की छोटी बहू ने मेरी सेवा करी है तब गाय ने साहूकार की बहू से पूछा इसलिए मेरी सेवा कर रही हो तब छोटी बहू बोली है
सियायु माता ने मेरी कोख बाँधी है तब सुरई माता ने पूछा ऐसा क्यों किया उन्होंने तो उसने सारी बात बता दी इसी कारण मेरे बच्चे जीवित नहीं रह पा रहे हैं कृपया आप मेरी कोख खुलवा दो तो मैं आपका उपकार मानूंगी तब सुरई गाय ने उसको अपने साथ सियायु माता के पास सात समुंदर पार ले जाने के लिए निकले दोनों चलते-चलते जब थक गई तो वह थककर एक पेड़ के नीचे जा बैठी उस पेड़ पर गरुड़ पंखनी का घोंसला था जिसमें उसके नन्हे-नन्हे बच्चे थे तब वहां थोड़ी देर में एक सांप उन बच्चों को खाने के लिए आया यह देखकर छोटी बहू ने सांप को मार डाला जब गरुड़ पंख वहां आई और उसने वहां रक्त देखा तो उसके होश उड़ गए उसने सोचा कि उसने मेरे बच्चों को मारा है और वह अपनी चोंच से छोटी बहू को मारने लगी तब छोटी बहू बोली मैंने तो तेरे बच्चों को सांप से बचाया है और तू मुझे ही मार रही है यह सुनकर गरुडिनी खुश हो गई और बोली तुम जो चाहे वह मांग सकती हो तब छोटी बहू ने को सारी बात बताई और बोली मैं सात समुंदर पार से सियायु माता के पास जा रही हूं
कृपया करके तुम मुझे वहां पहुंचा दो तब गरुड़नी ने अपनी पीठ पर बैठाकर सियायु माता के पास तक पहुंचा दिया सियायु माता सुरई गाय को देखकर प्रसन्न होती है और कहती है आओ बहन बड़े दिनों में आई हो और सियायु माता सुरई गाय से बोली मेरे बालों में जुई हो गए हैं तुम उन्हें निकाल दो तब सुरई गाय ने छोटी बहू से कहा सुरई गाय के कहने पर छोटी बहू ने सियायु माता के सारे जुई निकाल दिए इससे खुश होकर सियायु माता ने छोटी बहू को आशीर्वाद दिया तेरे सात बेटे और बहू हो यह सुनकर छोटी बहू बोली मेरे तो एक भी बेटा नहीं है तो माता ने पूछा ऐसा क्यों तब बहु बोली यदि आप मुझे वचन दे तो मैं इसका कारण बता सकती हूं तब सियायु माता ने उसको वचन दिया बहू बोली माता आपने मेरी कोख बाँधी है उसे खोल दो तब सियायु माता बोली मैं तेरी बातों में आकर धोखा खा गई तूने तो मुझे ठग लिया अब तू घर जा घर जाकर अहोई का उद्यापन करना और व्रत कर सात कड़ाई बनाना तुझे तेरे सारे बच्चे जीवित मिल जाएंगे तब छोटी बहू ने ऐसा ही आकर किया तब उसके सातों पुत्र जीवित हो उठे जय सियायु माता
(1) अहोई अष्टमी के दिन सुबह उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें
(2) इसके बाद व्रत का संकल्प लें और निर्जला व्रत का पालन करें
(3) इसके बाद उत्तर पूर्व दिशा में एक चौकी की स्थापना करे
(4) इसके बाद चौकी पर लाल कपड़ा बिछाए
(5) इसके बाद चौकी परअहोई माता की तस्वीर को स्थापित करें
(6) उसके बादचौकी पर तस्वीर के पासगेहूं का एक डेर बनाएं उस पर एक कलश स्थापित करें
(7) अहोई माता को फूल माला रोली सिंदूर अक्षत के साथ दूध और चावल से बना भारत चढ़ाई भारत के साथ आठ पुरीआठ मालपुआ माता को चढ़ाए
(8) इसके बाद घी का दीपक या अगरबत्ती जलाएं
(9) इसके बाद हाथों में फूल लेकर अहोई माता व्रत कथा पढ़े कथा समाप्त होने के बाद गेहूं और अर्पित करें
(10) शाम को तारों और चंद्रमा को देखकर आर्ग दे
(11) उसके बाद हल्दी कुंकुम अक्षत फूल चढ़कर भोग लगायें
(12) पूजा पूर्ण होने के बाद जो अपने सामान रखा है वह सामान अपनी सास या फिर अपनी घर की किसी बुजुर्ग महिला को दे दें