चैत्र नवरात्रि एक हिंदू त्योहार है जो कई हिंदू समुदायों में मनाया जाता है। यह नौ दिनों तक चलने वाला त्योहार है जो नवरात्रि नवे दिन के अंत में समाप्त होता है। ऐसे में चैत्र नवरात्रि का पहला व्रत 9 अप्रैल को रखा जाएगा इसमें माँ दुर्गा की पूजा की जाती है और नौ दिनों तक नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है
पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि जो कि इस बार 8 अप्रैल को देर रात 11 बजकर 50 मिनट पर लगेगी और अगले दिन यानी 9 अप्रैल को रात के समय 8 बजकर 30 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में चैत्र नवरात्रि का पहला व्रत 9 अप्रैल को रखा जाएगा। 9 अप्रैल को घटस्थापना का मुहूर्त सुबह 6 बजकर 3 मिनट से 10 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। प्रसाद और भोग भी देवी के अवतार के आधार पर अलग-अलग होते हैं। साल में दो बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। एक शारदीय नवरात्रि और एक चैत्र नवरात्रि। 9 दिनों तक आदिशक्ति मां दुर्गा के अलग अलग स्वरुपों की उपासना की जाती है
तारीख | 9 अप्रैल 2024 |
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तिथियां | मंगलवार |
नवरात्रि का शुभ मुहूर्त | सुबह 06:11 प्रातः 10.23 बजे तक |
चैत्र मास में मनायी जाने वाली नवरात्रि भारतीय हिन्दू परंपरा में विशेष महत्व रखती है। यह नौ दिनों का उत्सव हर वर्ष चैत्र माह में आयोजित होता है वैसे तो नवरात्रि का खास महत्व माना जाता है लेकिन चैत्र नवरात्रि में व्रत रखने से माता दुर्गा अपने भक्त पर जल्द प्रसन्न होती हैं खाने के अनुसार हम जब बाकी दिनों में जब पूजा अर्चना करते हैं तो हमें उतना फल प्राप्त नहीं होता जितना फल हमें नवरात्रि में व्रत रखने से प्राप्त होता है नवरात्रों में व्रत करने से हमें चार गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है इसके साथ ही ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से सुख समृद्धि और मानसिक सुख की प्राप्ति होती है।
प्रतिपदा तिथि व्रत 9 अप्रैल 2024 : शैलपुत्री पूजा - माता पार्वती के प्रथम रूप की पूजा की जाती है।
द्वितीया तिथि व्रत 10 अप्रैल 2024 : ब्रह्मचारिणी पूजा - माता पार्वती के दूसरे रूप की पूजा की जाती है, जो तपस्या और व्रत की प्रतीक हैं।
तृतीया तिथि व्रत 11 अप्रैल 2024 : चंद्रघंटा पूजा - माता पार्वती के तीसरे रूप की पूजा करते हैं, जिनका रूप चंद्र की तरह शांत और कोमल होता है
चतुर्थी तिथि व्रत 12 अप्रैल 2024 : कूष्माण्डा पूजा - माता पार्वती के चौथे रूप की पूजा की जाती है, जो शक्तिशाली और उत्तेजनापूर्ण होता है।
पंचमी तिथि व्रत 13 अप्रैल 2024 : स्कंदमाता पूजा - माता पार्वती के पांचवे रूप की पूजा की जाती है, जिनके पास स्वर्ग में उनके पुत्र स्कंद की देखभाल होती है।
षष्ठी तिथि व्रत 14 अप्रैल 2024 : कात्यायनी पूजा - माता पार्वती के छठे रूप की पूजा करते हैं, जिन्होंने तपस्या करके भगवान विष्णु का पति पाया था।
सप्तमी तिथि व्रत 15 अप्रैल 2024 : कालरात्रि पूजा - माता पार्वती के सातवें रूप की पूजा की जाती है, जिन्होंने शेर के रूप में दुर्गा को मारने के लिए जन्म लिया था।
अष्टमी तिथि व्रत 16 अप्रैल 2024 : महागौरी पूजा - माता पार्वती के आठवें रूप की पूजा करते हैं, जिनका रूप श्वेत और शुद्ध होता है।
नवमी तिथि व्रत 17 अप्रैल 2024 : सिद्धिदात्री पूजा - माता पार्वती के नौवें रूप की पूजा की जाती है, जो सभी सिद्धियों की प्रदात्री होती हैं।
वैसे तो अखंड ज्योत जलाने का अपना बहुत बड़ा महत्व होता है लेकिन यदि आप अपने घर में अखंड ज्योत जलाते हैं तो ध्यान रखें की ज्योति जलाने के बाद घर को कभी भी खाली नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यदि अखंड ज्योति बुझ जाए तो इसको बहुत बड़ा अपशगुन माना जाता है मान्यता के अनुसार नवरात्रों में अखंड ज्योत जलाने से घर परिवार में शुभ समृद्धि बनी रहती है और सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति मिलती है इसके साथ ही माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे आरोग्य की प्राप्ति होती है और इसको जलाने का एक खास महत्व यह भी है कि अखंड ज्योत जलाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक ऊर्जा का विनाश होता है
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तो धरती पर जौ पहली फसल थी वनस्पति की वह जौ की फसल थी इसी कारण नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना के साथ पूरे विधि विधान से जौ बोये जाते हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जौ को भगवान ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है इसलिए घटस्थापना के समय जौ की सबसे पहले पूजा की जाती है और उसे कलश में भी स्थापित किया जाता है
पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नामक एक दैत्य था जो की ब्रह्मा जी का बहुत बड़ा भक्त था और उसने अपने तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके एक वरदान प्राप्त कर लिया वरदान के अनुसार कोई भी देवदानव या पृथ्वी पर रहने वाला कोई मनुष्य उसे नहीं मार पाए वरदान प्राप्त करते ही वह निर्दय हो गया और तीनों लोकों में आतंक मचाने लगा उसके आतंक से परेशान होकर देवी देवताओं ने ब्रह्मा विष्णु महेश के साथ मिलकर मां शक्ति के रूप में मां दुर्गा को जन्म दिया उसके बाद मां दुर्गा और महिषासुर के बीच पूरे 9 दिनों तक युद्ध हुआ और दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया इसीलिए इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में विजयदशमी पर मनाया जाता है इसके अलावा विजयदशमी के पर्व को मनाने का एक मुख्य कारण और भी है
ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले और रावण के साथ होने वाले युद्ध में जीत हासिल करने से पहले देवी माता भगवती की 9 दिनों तक आराधना की रामेश्वर में माता की पूजा पूरे 9 दिनों तक कि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने लंका में विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया पद पश्चात भगवान श्री राम ने दसवें दिन रावण से युद्ध करके उनको हराया और उनका वध कर दिया रावण का वध करने के बाद विजय प्राप्त की यह कारण भी है विजयदशमी को मनाने का इस तरह असत्य पर सत्य की विजय प्राप्त हुई
दोस्तों माता रानी के इन 9 दिनों के व्रत पूजा पाठ के कुछ नियम होते हैं जिनके बारे में यदि पूर्ण जानकारी नहीं हो तो हम संपूर्ण फल की प्राप्ति नहीं कर सकते इसलिए हमें कुछ नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए ताकि हमें माता रानी के व्रत से संपूर्ण फल की प्राप्ति हो सके
1 नवरात्रि के दौरान मांस मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए
2 यदि अपने घर में अखंड ज्योत जलाई है तो घर को खाली नहीं छोड़ना चाहिए
3 प्याज लहसुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए
4 साफ और स्वच्छ कपड़े पहनना चाहिए
5 नवरात्रि के दिनों में किसी से लड़ाई झगड़ा भी नहीं करना चाहिए
6 किसी भी स्त्री का अपमान तो बिल्कुल भी ना करें
7 ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए
8 इस व्रत में अपने मन को शांत करके अधिक से अधिक माता का ध्यान करना चाहिए
व्रत का पालन करें: नवरात्रि के दौरान व्रत का पालन करना महत्वपूर्ण है। यह आपके आत्मा को शुद्ध करने में मदद करता है।
सेवा करें: दुर्गा माता के पूजन के साथ-साथ, आपको सेवा करना भी जरूरी है। अपने समाज में सेवा करना नवरात्रि के महत्वपूर्ण भाग है।
ध्यान करें: इस अवसर पर ध्यान और मेधाशक्ति की प्राप्ति के लिए समय निकालें।
नवरात्रि के दौरान, हम दुर्गा माता के रूपों की पूजा और उपासना करते हैं। आइए जानते हैं नवरात्रि की पूजा कैसे की जाती है:
1 सबसे पहले, ध्यान का स्थान तैयार करें। सजावट से भरपूर और शुद्धता का ध्यान रखें।
2 पूजा के लिए माता दुर्गा की मूर्ति या चित्र को स्थान दें।
3 पूजा की शुरुआत मंगल कलश के साथ करें।
4 माता के नौ रूपों की पूजा के बाद, कुमारिका पूजन करें।
5 आरती के बाद, प्रसाद बांटें और पूजा का पालन करें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कलश में देवी देवताओं का वास होता है ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना से ही व्रत का आरंभ माना गया है कलर्स को सुख समृद्धि ऐश्वर्य देने वाला एवं मंगलकारी माना जाता है कलश के रूप में भगवान विष्णु गले में रुद्रा मूल में ब्रह्मा एवं मध्य में देवी का निवास माना जाता है इसीलिए कलश को पूरे 9 दिनों तक एक निश्चित स्थान पर रखा जाता है और उसी स्थान पर माता रानी के नौ रूपों की पूजा अर्चना करते हैं पुराणों में कलश को सुख समृद्धि ऐश्वर्य और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना जाता है।
हिंदू मान्यता के अनुसार चैत्र और शारदीय दोनों नवरात्रि ही महत्वपूर्ण है लेकिन शास्त्रों के अनुसार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत शरद रिश्ते होती है जिसे शरद नवरात्रि भी कहा जाता है इसलिए यह नवरात्रि अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती हैं क्योंकि इसकी शुरुआत मां दुर्गा की पूजा के दिन से होती है जो की देवी दुर्गा को समर्पित है ऐसा नहीं है कि चैत्र नवरात्रि का महत्व कम है दोनों नवरात्रि में माता के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है किंतु शारदीय नवरात्रि चैत्र नवरात्रि से अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।
ऐसा माना जाता है कि इन नौ दिनों में जीवन के हर पहलू को उत्सव के रूप में मनाया जाता है साथ ही सबसे महत्वपूर्ण यदि आप प्रतीक चीज को उत्सव के रूप में लेते हैं तो आप जीवन को लेकर गंभीर न होते हुए भी पूरी तरह से जुड़े होते हैं इसलिए यदि हम नवरात्रों में नौ देवी की पूजा करते हैं तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण है कि हम जो पूजा अर्चना कर रहे हैं वह सच्चे हृदय से पूरे मन से करें करें।
नवरात्रि के दौरान व्रत का पालन करना आध्यात्मिक उन्नति की ओर एक महत्वपूर्ण कदम होता है। यह आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी सुधारता है।