आज हम प्रदोष व्रत के बारे में जानकारी देंगे सबसे पहले यदि हम किसी भी व्रत या त्यौहार के बारे में जानना चाहते हैं तो यह जानना बहुत जरूरी है यह होता क्या है और इसका महत्व क्या है मान लीजिए जैसे कि हम आज प्रदोष व्रत के बारे में जानना चाहते हैं उसके बारे में संपूर्ण जानकारी लेना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले यह समझना या जानना बहुत जरूरी है कि` यह प्रदोष होता क्या है इसका क्या महत्व है।
वैसे तो हिंदू धर्म में कई व्रतों का विधान है उन्हीं व्रतों में से एक प्रदोष व्रत होता है जिसके बारे में हम अपने पोस्ट के माध्यम से आप सबको पूर्ण जानकारी देना चाहेंगे आखिर प्रदोष व्रत होता क्या है जिस प्रकार एकादशी मै भगवान विष्णु की पूजा की जाती है उसी प्रकार भगवान शंकर को खुश करने के लिए प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत में भगवान शंकर की पूजा की जाती है त्रयोदशी वाले दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है जिस प्रकार महीने में दो एकादशी पड़ती है उसी प्रकार महीने में दो त्रयोदशी आती हैं एक शुक्ल पक्ष की एक कृष्ण पक्ष की और उन दोनों ही दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है और उस व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है प्रदोष क्या है प्रदोष का सही अर्थ है वह समय जब सूर्योदय से 45 मिनट पहले और सूर्य अस्त से 45 मिनट बाद का समय प्रदोष काल होता है उसी बीच के समय को प्रदोष कहा जाता है और उसी समय भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है यह व्रत बहुत ही ज्यादा फलदाई होता है इस व्रत को करने से भगवान शिव सदैव अपने भक्तों पर अपना आशीर्वाद अपनी कृपा बनाए रखते हैं।
यह व्रत भगवान शिवजी के लिए किया जाता है यह व्रत रखने से भगवान शिव पार्वती हमारी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं और दोस्तों हम आपको यह बताना चाहेंगे कि यह व्रत सबसे पहले चंद्रमा ने किया था इस दिन संध्या काल में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से हमारी हर मनोकामना पूर्ण होती है और इस व्रत को करने से भगवान शिव और पार्वती का सदैव आशीर्वाद हमें प्राप्त होता है और इस व्रत को करने से ऐसा भी माना जाता है कि 100 गायों के दान के बराबर का पुण्य फल हमें प्राप्त होता है और दोस्तों इस व्रत को रखने से हमारे दांपत्य जीवन में सुख समृद्धि भी आती है पति पत्नी के संबंध मधुर होते हैं।
ऐसा भी माना जाता है कि इस व्रत को करने से न केवल पति पत्नी के संबंध मधुर होते हैं बल्कि आपके घर परिवार आपके कुटुंब में भी सुख समृद्धि बढ़ने लगती है कहने का तात्पर्य है कि आप इस व्रत को करते हैं तो आपके परिवार में जो क्लेश का माहौल बना रहता है ईशा बनी रहती है भेदभाव रहता है तो इस व्रत को करने से यह सब समाप्त होकर सुख समृद्धि आ जाती है और सबसे ज्यादा यह व्रत पति पत्नी और बेटे के रिश्ते को मधुर बनाने में खुशियां लाने में ज्यादा महत्व रखता है इसलिए हमें इस व्रत को करना चाहिए ताकि हमारे घर परिवार में सुख समृद्धि और भगवान शिव की कृपा और उनका आशीर्वाद हमेशा हम सब पर बना रहे।
तारीख | दिन |
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09 जनवरी 2024 | मंगलवार |
23 जनवरी 2024 | मंगलवार |
08 फरवरी 2024 | गुरुवार |
22 फरवरी 2024 | गुरुवार |
08 मार्च 2024 | शुक्रवार |
22 मार्च 2024 | शुक्रवार |
23 मार्च 2024 | शनिवार |
07 अप्रैल 2024 | रविवार |
21 अप्रैल 2024 | रविवार |
06 मई 2024 | सोमवार |
21 मई 2024 | मंगलवार |
04 जून 2024 | मंगलवार |
20 जून 2024 | गुरुवार |
04 जुलाई 2024 | गुरुवार |
19 जुलाई 2024 | शुक्रवार |
02 अगस्त 2024 | शुक्रवार |
17 अगस्त 2024 | शनिवार |
31 अगस्त 2024 | शनिवार |
16 सितम्बर 2024 | सोमवार |
30 सितम्बर 2024 | सोमवार |
15 अक्तूबर 2024 | मंगलवार |
30 अक्तूबर 2024 | बुधवार |
14 नवम्बर 2024 | गुरुवार |
28 नवम्बर 2024 | गुरुवार |
29 नवम्बर 2024 | शुक्रवार |
13 दिसम्बर 2024 | शुक्रवार |
28 दिसम्बर 2024 | शनिवार |
वैसे तो इस व्रत को करने से हमें कई प्रकार के फल मिलते हैं किंतु दोस्तों इस व्रत को करने से हमें संतान सुख की भी प्राप्ति होती है या जैसा कि हम पिछले पृष्ठ में बता चुके हैं कि इस व्रत को करने से पति पत्नी के संबंधों में मधुरता आती है और परिवार में सुख समृद्धि आती है किंतु इसके पश्चात ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से हमें फल स्वरूप संतान सुख की भी प्राप्ति होती है संतान प्राप्ति के लिए वरदान है यह व्रत ऐसा माना जाता है कि यदि आपको संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है तो शनि प्रदोष व्रत अवश्य करें 21 प्रदोष व्रत यदि आपने कर लिए तो भगवान शिव की कृपा से अवश्य ही आपको संतान सुख की प्राप्ति होगी इसलिए हमें इस प्रदोष व्रत को अवश्य करना चाहिए ताकि हम अपनी इच्छाओं और कामनाओं को पूरा करने के लिए यह व्रत अवश्य करें वैसे तो हर कोई किसी न किसी फल की इच्छा से ही भगवान की पूजा अर्चना करता है
हर व्यक्ति कुछ ना कुछ फल की इच्छा अपने मन में रखता है उसी फल की प्राप्ति के लिए हम भगवान की पूजा करते है हैं उन्हीं में से यह प्रदोष व्रत भी है इस व्रत को सच्चे मन से करने से हमें निश्चित ही संतान या अन्य किसी भी इच्छा की पूर्ति और फल की प्राप्ति होती है।
हिंदू शास्त्रों के अनुसार इस प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है 1 महीने में दो बार त्रयोदशी पड़ती है मतलब कि हर15 वे दिन त्रयोदशी पड़ती है और उस त्रयोदशी वाले दिन ही इस व्रत को किया जाता है महीने में दो त्रयोदशी पढ़ती हैं एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में पढ़ती है इन दोनों ही दिनों में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है वैसे तो इसके व्रत की बहुत मान्यताएं होती है किंतु बहुत से लोग अभी भी इस व्रत के बारे में नहीं जानते हैं अभी भी बहुत से लोगों को इसके बारे में संपूर्ण जानकारी नहीं है इसलिए इस व्रत के महत्व को नहीं समझते इसलिए दोस्तों आज हम इस पेज के माध्यम से इस व्रत के बारे में विस्तार से बात करेंगे क्योंकि जब तक हम इस व्रत की पूरी जानकारी नहीं लेंगे तब तक इस व्रत के महत्व को कैसे समझ पाएंगे जो कोई यह व्रत पूरी श्रद्धा भाव से करता है।
तो भगवान उनकी सब मनोकामना पूर्ण करते हैं इस वर्ष यह व्रत जुलाई माह में पड़ रहा है इस व्रत को करने वाला संपूर्ण सुख पाता है इस व्रत को करने से हमारे जीवन में खुशियां व शांति आती हैं और इस व्रत को करने का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करना होता है और अपने जीवन से सारे दुखों को कष्टों को समाप्त करना होता है यह व्रत एकादशी व्रत की तरह ही होता है इस व्रत में क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिए किस प्रकार यह व्रत करना चाहिए इसको करने से हमें क्या लाभ मिलता है इस व्रत का क्या महत्व होता है कब से शुरू करने चाहिए इस व्रत की पूर्ण विधि क्या है इन सब के बारे में आज आप सबको जानकारी देना चाहेंगे
स्कंद पुराण के अनुसार शनि प्रदोष का बहुत ही महत्व होता है इस व्रत को शुरू करने के लिए शनि प्रदोष को बहुत उत्तम बताया गया है यदि दोस्तों आप शनि प्रदोष से यह व्रत शुरू करना चाहते हैं तो यह बहुत ही उत्तम होगा लेकिन अलग-अलग मनोकामना के लिए यह व्रत शुरू करना चाहते हैं तो उसके अलग-अलग बार होते हैं जैसे कोई ऋण मुक्ति के लिए इस व्रत को करता है जैसे आप पर बहुत कर्जा है आप अपनेकर्ज को चुकाना चाहते हैं उससे मुक्ति पाना चाहते हैं तो उसके लिए मंगल प्रदोष से यह व्रत शुरू करें इसके अलावा यदि कोई भी पुरुष भाई इस व्रत को करना चाहते हैं स्त्री के लिए परिवार के लिए सुख समृद्धि के लिए तो वह लोग शुक्र प्रदोष से इस व्रत को शुरू कर सकते हैं ऐसा करने से सुख समृद्धि और अच्छी स्त्री की प्राप्ति होती है इसके साथ ही यदि आप आरोग्य रहना चाहते हैं रोगों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो आप रवि प्रदोष व्रत शुरु कर सकते हैं इसी तरह आपकी मनोकामना की पूर्ति चाहते हैं तो बुध प्रदोष से यह व्रत कर सकते हैं।
आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी इसके अलावा गुरु प्रदोष से भी यह व्रत शुरू कर सकते हैं जिससे आपके शत्रुओं का विनाश होता है और यदि आप सोम प्रदोष के व्रत शुरू करते हैं तो आपकी सभी मनोकामनाएं अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है यदि आप शिव भक्ति चाहते हैं शिवजी को प्रसन्न करना चाहते हैं और सभी मनोकामना की पूर्ति चाहते हैं तो सोम प्रदोष से आप यह व्रत शुरु कर सकते हैं इस तरह से हमने केवल बार व्रत के बारे में बताया है इसके अलावा इस व्रत को शुरू करने से पहले हमें और भी कई बातों को ध्यान में रखना चाहिए जैसे कि गुरु और शुक्र तारा अस्त नहीं होना चाहिए कहने का अर्थ यह है कि जब गुरु और शुक्र तारा अस्त हो रही हो तो हमें इस व्रत की शुरुआत नहीं करनी चाहिए इसके अलावा भद्रा योग भी नहीं होना चाहिए इसके साथ ही खंड तिथि से भी कोई व्रत शुरू नहीं करना चाहिए मतलब दो तिथियां एक साथ पढ़ती हैं जैसे द्वादशी और त्रयोदशी एक ही दिन की होती है या चतुर्दशी और त्रयोदशी एक ही दिन की होती है तो ऐसी स्थिति में भी इस व्रत को शुरू न करें जिस दिन भी प्रदोष की पुण्यतिथि हो उसी दिन से आपको व्रत शुरू करना चाहिए |पौष के महीने के महीने को छोड़कर आप किसी भी महीने में यह व्रत शुरू कर सकते हैं यदि आप पहली बार यह व्रत शुरू करना चाहते हैं तो जब शुक्ल पक्ष में सोम प्रदोष व्रत पड़ता है उस दिन से आप इन व्रतों को प्रारंभ कर सकते हैं प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होते हैं
भगवान शिव को समर्पित यह व्रत महीने के दोनों ही रखने चाहिए इस तरह से साल में 26 प्रदोष व्रत पढ़ते हैं 26 व्रत रखने यानी कि 1 साल के व्रत के बाद जो 27 वा व्रत पड़ता है उसमें आप व्रत का उद्यापन कर सकते हैं यदि आप पूरे व्रत नहीं रख सकते हैं तो 11 व्रत रखने का संकल्प लें 11 व्रत रखने के बाद 12वीं व्रत को आप उद्यापन कर सकते हैं उद्यापन भी विधिपूर्वक करना चाहिए जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि सबसे पहले यह व्रत चंद्रमा ने किया था चंद्रमा को क्षयरोग हो गया था जिसके निवारण के लिए यह व्रत रखकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी प्रदोष काल का समय सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद का होता है इस व्रत में भगवान शिव से संबंधित जो भी पूजा अर्चना होती हैवह प्रदोष काल होता है उसी समय में हमें भगवान शिव की पूजा अर्चना सच्चे मन पूर्ण भाव से करनी चाहिए प्रदोष काल में भगवान बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में होते हैं और आनंद तांडव करते हैं ऐसे समय में यदि भक्त उन्हें पुकारते हैं तो उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं सभी व्रतों का महत्व अलग-अलग होता है किंतु पूजा सब की एक समान होती है।
वैसे तो यह व्रत निर्जला रखा जाता है इसमें कुछ चीजें ऐसी हैं जिनका हमें अवश्य ध्यान रखना प्रदोष काल में शिव जी की पूजा के बाद ही हमें भोजन ग्रहण करना चाहिए इस व्रत को वैसे तो निर्जला ही रखते हैं किंतु यदि आप में समर्थ नहीं है तो आप फलाहारकर सकती हैं फल वगैरह खाकर आप इस व्रत को पूर्ण कर सकते हैं इस तरह व्रत में आप व्रत वाला सामान ही खा सकती हैं और एक बार ही खा सकते हैं जैसे कूटू के आटे की पूरी सिंघाड़े की आटे की कतली फल वगैरा जैसी चीजें आप इस व्रत में खा सकते हैं।
इस व्रत मेंअन्न चावल लाल मिर्च और सादा नमक नहीं खाना चाहिए कहने का तात्पर्य है कि यह व्रत और व्रतों की तरह ही होता है तो इस व्रत में भी वह सब नहीं खाना चाहिए जो आप नॉर्मल दिनों में खाते हैं अन्न की बनी हुई किसी भी चीज को नहीं खाना चाहिए बाहर की खाने की चीजों का सेवन न करे और सबसे खास बात यह है कि आप जो भी दिन के समय लेते हैं वह बस एक ही बार उसका सेवन करें| बार-बार आप किसी भी चीज को ग्रहण नहीं करें।
इस व्रत को करने की अलग-अलग इच्छाओं की पूर्ति के लिए अलग-अलग व्रत है और उनके नियम एक ही होते हैं चाहे आप किसी भी इच्छा की पूर्ति के लिए किसी भी बार से कोई भी व्रत शुरू करें किंतु इसके नियम एक ही होते हैं जैसे जिस भी तिथि से आपने व्रत शुरू किया उसके बाद आपको नियमित व्रत करने चाहिए कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष सभी व्रत आप 1 वर्ष तक करेंगे और यह संकल्प आप व्रत शुरू करने से पहले ही दिन लेंगे फल के अनुरूप ही व्रत को प्रारंभ करना चाहिए सबसे पहले हम आपको बताना चाहेंगे कि जिनके संतान नहीं है या उनको अभी तक संतान की प्राप्ति नहीं हो पा रही है उन्हें यह व्रत कैसे करना है शुक्ल पक्ष के शनिवार पर जब भी प्रदोष का व्रत आए तब उन्हें व्रत शुरू करना चाहिए शुक्ल पक्ष के शनिवार में प्रदोष आएगा या त्रयोदशी आएगी तब आप उस व्रत को शुरू कर सकते हैं और जब से शुरू करें तब से पूरे 1 वर्ष तक यह व्रत कीजिए भगवान भोलेनाथ ने चाहा तो आपको अवश्य ही संतान की प्राप्ति होगी इसी प्रकार अलग-अलग इच्छाओं की पूर्ति के लिए अलग-अलग बार के व्रत होते हैं जिनके नियम इसी प्रकार हैं ।
ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनके नृत्य की प्रशंसा करते हैं और शास्त्रों की माने तो इस व्रत को करने से सारे दोषों से मुक्ति मिलती है साथ ही भगवान शिव अपने भक्तों पर असीम कृपा बरसाते हैं इस दिन माता पार्वती की भी पूजा की जाती है इसीलिए भगवान शिव की पूजा का सही समय प्रदोष काल होता है सूर्योदय से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त से 45 मिनट बाद का समय प्रदोष काल होता है इसी समय में भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए इस समय भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना जाता है ऐसा माना जाता है कि इस समय भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं इसलिए इस प्रदोष काल में पूजा अर्चना करनी चाहिए और यही समय उचित होता है
सनातन धर्म में इस व्रत को बड़ा ही महत्वपूर्ण माना जाता है यह व्रत निराहार किया जाता है लेकिन किन्हीं कारणवश आप निराहार नहीं कर सकते तो दिन में एक बार फलाहार कर सकते हैं इस दिन लोग अपने अपने कष्टों के निवारण के लिए भगवान भोलेनाथ के साथ-साथ माता पार्वती की भी पूजा करते हैं तो आइए आज हम जानेंगे इस व्रत की संपूर्ण पूजा विधि
पूजा की सामग्री में चाहिए फल फूल नारियल बतासे धतूरे का फूल चंदन देसी घी गंगाजल मिठाई कपूर बेलपत्र पान केले का पत्ता चौकी पीला कपड़ा चौकी और श्रृंगार का सारा सामान जैसे सिंदूर बिंदी काजल महावर लिपस्टिक चूड़ी बिछिया रुमाल शीशा कंघा नेलपेंट तेल शैंपू पाउडर क्रीम यह है पूरा सोलह सिंगार यह सब सामान होना चाहिए और इसके बाद हमें पंचामृत के लिए चाहिए दही शक्कर दूध शहद. सबसे पहले पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर पवित्र कर ले थोड़ा गंगाजल अपने ऊपर भी डाल ले चौकी रख ले और पूजा की सभी सामग्री एक साथ चौकी के पास रख ले सभी पूजा सामग्री एवं पूजा वाले स्थान पर रखी चौकी को गंगाजल डालकर पवित्र करें| उसके बाद चौकी पर एक पीला कपड़ा बिछा लीजिए और माता पार्वती भगवान शिव और गणेश की प्रतिमा को उस चौकी पर स्थापित कर लीजिए शिवलिंग चौकी पर रख लीजिए उसके बाद चौकी के दाहिने अष्टदल कमल बना लीजिए उस पर कलश की स्थापना करें आम के पत्ते जल से भरा हुआ कलश पर रखें और मौली से सजा नारियल कलश पर रखें इसके बाद घी का दीपक जलाकर चौकी पर रखें दोस्तों किसी भी देवी देवताओं की पूजा से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है
तो हम गणेश जी की स्थापना कर लेते हैं चौकी पर एकअक्षत रख लीजिए पान के पत्ते रख लीजिए अब गणेश जी को उस पर स्थापित कर लीजिए सबसे पहले हाथ में एक पुष्प लेकर चंदन और चावल लगाकर गणेश भगवान का स्मरण कीजिए और गणेश जी से प्रार्थना कीजिए हे गणपति बप्पा हम आपको नमन करते हैं हमारी आज की पूजा बिना किसी बाधा के संपन्न करें अब उस फूल को गणेश जी के समक्ष छोड़ दें उसके बाद गणेश जी का चंदन से तिलक करें और चावल चढ़ाएं फिर भगवान के सामने नावेद रखें और पान सुपारी समर्पित करें और इच्छा अनुसार दक्षिणा रख लीजिए और भगवान के सामने रखें एक लोटे में अलग से जल लेकर उसमें फूल डालकर सभी देवी-देवताओं पर छोड़के गणेश जी की पूजा के बाद माता पार्वती की पूजा करेंगे उनको चावल चढ़ाकर टीका लगाएं फिर माता पार्वती पर सिंगार का सारा सामान चढ़ाएं माता पार्वती जी की पूजा करते समय ओम गोराई नमः ओम गोराई नमः का जाप करें ओम नमः शिवाय का जाप करें और शिवलिंग पर जल चढ़ाएं फिर दही चढ़ाएं फिर गंगाजल से नहला दे भगवान शंकर को पंचामृत बहुत पसंद है इसीलिए उनको पंचामृत से स्नान अवश्य कराएं शिवलिंग पर चंदन का लेप लगाएं अब चावल धतूरे का फूल बेलपत्र चढ़ाकर भगवान शंकर की पूजा आरंभ करें और धूप दीप जलाएं और भगवान के समक्ष फलों का भोग लगाएं भगवान शिव के सामने नावेद रखें और पूजा को पूर्ण करें कहते हैं कि हम कितने भी नियम से पूजा कर ले किंतु कोई ना कोई कमी हमसे हो ही जाती है रहती है उन्हीं कमी की पूर्ति के लिए हाथ जोड़कर भगवान के सामने अपनी गलती की क्षमा याचना करें और उसके पश्चात कथा को पढ़ें ध्यान रखें हम जिस भी वार की पूजा कर रहे हैं उसी बार की कथा पढ़ें यानी हम रवि प्रदोष का व्रत करते हैं तो रवि प्रदोष कथा कथा ही पढ़ें फिर शिव चालीसा पढ़ें उसके बाद गणेश जी की आरती करें शिवजी की आरती करके पूजा संपन्न करें और सब को प्रसाद वितरित करें
प्रदोष व्रत के दिन दिनभर उपवास रखना चाहिए, जिसका मतलब है सुबह से लेकर शाम तक निराहार रहना। इसे निर्जला उपवास भी कहा जाता है और यह विशेष फलदायी माना जाता है। प्रदोष व्रत के दिन पूर्ण-ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
प्रदोष व्रत को शुरू करने के लिए आपको किसी भी मास की त्रयोदशी (तेरहवीं) तिथि का चयन करना चाहिए। हालांकि, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों में से यह व्रत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। आप प्रदोष व्रत को किसी भी मास में शुरू कर सकते हैं, लेकिन सोमवार या गुरुवार को त्रयोदशी होने पर यह विशेष शुभ माना जाता है।
प्रदोष व्रत में शारीरिक संबंध बनाना नहीं चाहिए। यह व्रत एक आध्यात्मिक प्रथा है जिसमें भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। व्रत के दौरान विवाहित जोड़े को ब्रह्मचर्य की नीति का पालन करना चाहिए और शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए। इसका मतलब है कि प्रदोष व्रत में ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना चाहिए और शारीरिक संबंधों से बचना चाहिए। इसके साथ ही, व्रत को ध्यान और आध्यात्मिकता के साथ निभाना चाहिए।
प्रदोष व्रत के लिए सबसे अच्छा माना जाने वाला दिन त्रयोदशी (तेरहवीं) होता है जो सोमवार या गुरुवार को पड़ता है। ये दिन भगवान शिव और पार्वती के विशेष आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इसलिए, इन दिनों को प्रदोष व्रत रखना सबसे अच्छा माना जाता है। यह व्रत सही ढंग से पालन करने पर आप आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति में वृद्धि का अनुभव कर सकते हैं।
प्रदोष व्रत हर हिन्दू माह में दो बार आता है। यानी प्रति माह में एक बार प्रदोष व्रत का आयोजन होता है। यह व्रत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों में ही रखा जा सकता है। इसलिए, साल में कुल मिलाकर 24 बार प्रदोष व्रत मनाया जाता है। यह व्रत हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और उसके अवसर पर भक्तों द्वारा भगवान शिव की पूजा और आराधना की जाती है।