रक्षाबंधन हिंदुओं का महत्वपूर्ण त्यौहार है श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन हर साल यह त्यौहार मनाया जाता है रक्षाबंधन का यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है इस खास अवसर पर बहने शुभ मुहूर्त में अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती है और अपने भाई की लंबी आयु की कामना करती हैं और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं शास्त्रों की माने तो रक्षाबंधन का यह त्यौहार शुभ मुहूर्त में ही मनाना चाहिए इस दिनभद्रकाल नहीं होना चाहिए क्योंकि किसी भी शुभ कार्य में भद्राकाल का होना शुभ नहीं माना जाता इसमें किसी भी शुभ कार्य को करनाक वर्जित बताया गया है।
Date | तारीख | 19 August 2024 |
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Day | दिन | Monday | सोमवार |
रक्षाबंधन 2024 शुभ मुहूर्त | 01:35 से 09:08 तक |
राखी पूर्णिमा प्रारम्भ | 19 अगस्त 2024, 01:55 तक |
राखी पूर्णिमा समाप्त | 19 अगस्त 2024, 09:08 तक |
रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहनों के लिए हमेशा से खास रहा है इसको शुरू करने के पीछे कई कहानियां व कई कारण है शास्त्रों के अनुसार रक्षाबंधन से जुड़ी कई बातें कथा बताई जाती है जो रक्षाबंधन को शुरुआत की बात कहते हैं और इस त्यौहार में इतिहास का भी जुड़ाव है वैसे तो दोस्तों हम सभी जानते हैं हर त्योहार की अपनी अलग अलग कथा या कहानी होती है जिसके स्वरूप हम इनको मनाते हैं उसी प्रकार रक्षाबंधन का भी पर्व कई धार्मिक कहानियों से संबंध रखते हैं इस दिन हर बहन अपने भाई को राखी बांधती हैऔर उसकी लंबी आयु की कामना करती है ऐसा करने से भाई बहन के रिश्ते मजबूत होते हैं आइए दोस्तों आज हम अपनी पोस्ट के माध्यम से आपको यह भी बताना चाहेंगे इसकी शुरुआत कहां से हुई और कब से हुई।
श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व वैसे तो कई कारणों से मनाया जाता है शास्त्रों के अनुसार इसको शुरू करने की कुछ धार्मिक व ऐतिहासिक कथाएं हैं जिनके बारे में पूरी जानकारी होना अति आवश्यक है इसको शुरू करने के तीन मुख्य कारण है।
वैसे तो हम सभी जानते हैं कि सदियों से चले आ रहे इस त्यौहार को मनाने का मुख्य कारण भाई बहन का अटूट रिश्ता है बंधन है प्यार है इस दिन हर बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसको सच्चे मन से दुआएं देती है वहीं दूसरी तरफ भाई भी अपनी बहन को उनकी रक्षा का वचन देता है लेकिन इसके पीछे के कुछ मुख्य कारण है जिनमें से पहला कारण यह है।
इसके पीछे का दूसरा कारण यह भी है कि जब श्री कृष्ण ने अपने भाई शिशुपाल को मारने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से प्रहार किया था. शीशपाल की गर्दन कट कर नीचे गिर गई और शीशपाल का अंत हो गया जब सुदर्शन चक्र वापस आ रहा था तब श्रीकृष्ण की उंगली कट गई तब पांडवों की पत्नी द्रोपति ने अपनी साड़ी में से एक कपड़ा फाड़ कर उनकी कटी हुई उंगली पर बांधा तब श्री कृष्ण जी ने द्रोपदी से कहा कि आज से मैं तुम्हें अपनी बहन मानता हूं और सदैव ही मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा तभी से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा।
सदियों पहले दैत्यों के राजा बलि ने 110 यज्ञ पूर्ण कर लिए थे जिस वजह से देवताओं में डर बढ़ने लगा कहीं राजा बलिअपनी शक्ति से उन पर भी अपना अधिकार ना कर ले और इसी डर से सभी देवगढ़ भगवान विष्णु के समक्ष पहुंचे और उनको सारी बात बताई तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का अवतार लिया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे तब राजा बलि ने उस ब्राह्मण को भिक्षा के रूप में तीन पग भूमि देने का निश्चय किया भगवान विष्णु ने एक पग में स्वर्ग दूसरे पग में पृथ्वी को मांग लिया जब राजा बलि ने तीसरा पग आगे बढ़ते देखा तो वह परेशान हो गया और उसकी समझ में नहीं आ रहा था क्या करें और यह हो क्या रहा है
तब राजा ने अपना सिर ब्राह्मण देव के चरणों में रख दिया और कहा आप अपना तीसरा भाग यहां रखें और इस प्रकार राजा बलि से स्वर्ग और पृथ्वी पर राज्य करने का अधिकार छीन लिया गया और और राजा बलि रतन मैं चले गए राजा बलि ने अपनी तपस्या से अपनी भक्ति से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके हर समय अपने सामने रहने का वचन मांग लिया और इस प्रकार भगवान विष्णु को राजा बलि का द्वारपाल बनना पड़ा जिस कारण देवी लक्ष्मी दुविधा में पड़ गई और वह विष्णु जी को प्रशासन से वापस लाना चाहती थी तब वह अपनी समस्या को लेकर नारद जी के पास गई.तब नारद जी ने उनको उनकी समस्या का हल बताया. तब माता लक्ष्मी राजा बलि के पास पहुंची और उन्होंने राजा बलि को राखी बांधकर अपना भाई बना लिया और उपहार के रूप में उन्होंने विष्णु जी को मांग लिया उस दिन सावन मास की पूर्णिमा थी तभी से यह रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है।
इस पर्व को मनाने का एक ऐतिहासिक कारण भी है जिससे इस त्यौहार की शुरुआत हुई है इतिहास के अनुसार सिंधु घाटी की सभ्यता से रक्षाबंधन का इतिहास जुड़ा है रक्षाबंधन एक ऐसा त्यौहार है जिसका इतिहास करीब 6000 साल पुराना है और बताया यह भी जाता है कि इसकी शुरुआत रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं ने की थी मध्यकालीन युग में राजपूत और मुसलमानों के बीच जंग चल रही थी उसी दौरान चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने सुल्तान बहादुर शहर से खतरा देखते हुए हिमायू को राखी भेजी थी तब हिमायू ने उनकी रक्षा करके उन्हें अपनी बहन का दर्जा दिया था ऐसा माना जाता है कि तभी तुम देख लो से रक्षाबंधन की शुरुआत हुई लेकिन इसके पीछे और भी बहुत से कारण हैं और कहानियां हैं जिनके बारे में हम आगे बात करेंगे।
भाई बहनों के प्रेम का प्रतीक माना जाने वाला यह पर्व भगवान शिव को समर्पित होता है इस पवित्र महीने में भगवान शिव सहित पूरे परिवार की उपासना की जाती है और सावन मास की इस पूर्णिमा का यह पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण होता है इस दिन बहनें अपने भाई को राखी बांधती है जिस दिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि राखी बांधते समय भद्राकाल नहीं होनी चाहिए क्योंकि भद्रकाली मैं कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित बताया गया है इसलिए शुभ मुहूर्त में ही राखी बांधनी चाहिए।
गत वर्ष की तरह पूर्णिमा तिथि को इस वर्ष भी भद्राकाल पड़ेगा जब पूर्णिमा तिथि रहेगी तभी भद्रकाल भी आरंभ हो जाएगा इसलिए इस वर्ष हमें भद्राकाल का समय ध्यान में रखते हुए हीअपने भाई को राखीबांधनी चाहिए भद्राकाल कब से कब तक रहेगा कब समाप्त होगा कब शुभ मुहूर्त आएगा इस बात की पूरी जानकारी हम आप से अगले पेज में सांझा करेंगे.
आइए आज हम इस पर्व की पूजा विधि के बारे में जानेंगे कि किस प्रकार त्रिलोक को जीतने राजा बलि देवी लक्ष्मी जी के राखी के धागे की डोर से ऐसे बन गए जैसे मानो संपूर्ण संसार का प्रेम उसमें समाहित हो गया उसी प्रकार इस भाई बहनों का प्रेम है
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि श्रावण मास का महीना शक्ति का एक उत्तम माना जाता है इस महीने में पूरा संसार खुशी और उत्साह मनाता है और इसी माह की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का पर्व भी मनाया जाता है एक समय की बात है एक नगर में एक साहूकार रहता था उसके 3 पुत्र और 3 बहू रहती थी साहूकार की सबसे छोटी बहू बहुत सुशील और संस्कारी थी इसके साथ ही वह कृष्ण भगवान की परम भक्त थी सावन के महीने में साहूकार की दोनों बड़ी बहू अपने-अपने पीहर जाने की तैयारी करने लगे सुबह जल्दी उठकर घर का सारा काम करने लगे तो छोटी बहू ने पूछा क्या बात है दीदी आज आप दोनों इतनी जल्दी जल्दी काम क्यों कर रहे हैं तो उसकी जेठानी बोले कल रक्षाबंधन का त्यौहार है हमको अपने भाई को राखी बांधने अपने अपने पीहर जाना है
वह बोली तेरा तो कोई भाई नहीं है तू क्या जाने रक्षाबंधन का महत्व भाई बहन के रिश्ते का महत्व छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी और वह भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा के सामने जाकर रोने लगी और बोली मेराआज मेराभी कोई भाई होता तो आज मैं भी अपने पीहर जाती अगले दिन रक्षाबंधन का त्योहार था तभी छोटी बहू के दूर के रिश्ते का एक भाई आया और साहूकार से बोला यह मेरी बहन है मैं इसका भाई हूं और आज के इस पर्व पर मैं इसे अपने साथ ले जाने आया हूं तब साहूकार के बेटे ने कहा लेकिन इसका तो कोई भाई नहीं है कौन हो तुम उस आदमी ने साहूकार को समझाया तत्पश्चात साहूकार और उसका बेटा मान गया और छोटी बहू को उसके साथ भेजने को तैयार हो गए किंतु अभी भी उसके पति के मन में शंका थी वह बोलाआप इसे ले तो जाओ किंतु इसे वापस लेने मैं स्वयं आऊंगा ऐसा कह कर उसने अपनी पत्नी को उसके साथ भेज दिया रास्ते में चलते हुए छोटी बहू ने अपने भाई से कहा भाई आप इतने सालों से कहां थे और रक्षाबंधन पर मुझसे राखी बनवाने क्यों नहीं आए तब उसका भाई बोला बहन में सात समंदर पार परदेस में कमाने गया था
जब वह दोनों अपने घर पहुंचे तो उसकी भाभी ने अपनी ननद का स्वागत किया खूब आवभगत की तब दोनों भाई बहन ने रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया ऐसे ही हंसी खुशी समय बीत गया 1 दिन छोटी बहू का पति उसे लेने आया महल जैसा घर और ऐसो आराम देखकर वह चकित रह गया भाई और भाभी ने उसकी भी खूब आव भगत की अगले दिन सुबह के समय है भाई और भाभी ने उसे उसके घर के लिए विदा किया विदा करते समय उसे खूब सोना चांदी हीरा जवाहरात देकर विदा किया थोड़ी दूर जाने पर छोटी बहू के पति का गलती से अपना वही भूलआया हूं मैं अभी उसे लेकर आता हूं तो छोटी बहू बोली अरे कोई बात नहीं हुआ तो आपका पुराना करता था अब आप इतनी दूर जाकर उसको लेने जाएंगे किंतु वह नहीं माना बोला मैं अभी जाकर लेकर आता हूं ऐसा कहकर वह दोनों वापस चल दिए वजह से वहां भाई के घर पहुंचे तो देखा भाई के घर की जगह एक बड़ा सा पीपल का पेड़ है और उस पेड़ पर उसके पति का कुर्ता टंगा हुआ था
यह देख कर वह बहुत नाराज हुआ और अपनी पत्नी से बोला यह क्या काला जादू है कौन था वह जो तेरा भाई बनकर तुझे लेकर यहां आया था मुझे तो शुरू से ही शक था इसीलिए मैं तुझे लेने आया था कौन था वह ऐसी बात करते हुए वह अपनी पत्नी को मारने लगा कि तभी भगवान श्रीकृष्ण वहां स्वयं प्रकट हुए और भोले मत मारो इसे यह मेरी बहन है इस साल रक्षाबंधन पर यह मुझे राखी बांधने आई थी और अब मैंने उसका भाई होने का फर्ज निभाया है मैं इसकी रक्षा करने आया हूं इसे मैंने अपनी बहन माना है यह सब देखकर और सुनकर उसका पति चकित रह गया और भगवान श्री कृष्ण को देखकर उनके चरणों में गिर गया और उसने भगवान से अपनी की हुई गलतियों की क्षमा मांगी
नहीं, रात को राखी बांधने का कोई विशेष महत्व नहीं होता है। रक्षा बंधन का सार भाई-बहन के बीच की भावनाओं और रिश्ते में होता है, चाहे वह दिन के किसी भी समय हो।
राखी बांधने का कोई विशेष शास्त्रीय प्रमाण नहीं है जो रात को बंधा जा सके। रक्षा बंधन का त्योहार समय के अनुसार अनुकूलित और लचीला होता है, जिससे व्यक्तिगत पसंद और परिस्थितियों के आधार पर चुनाव किया जा सकता है।
19 अगस्त को राखी बांधने का त्योहार रक्षा बंधन के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को आता है। श्रावण मास भारतीय पंचांग में हिंदू धर्म के अनुसार महत्वपूर्ण माना जाता है और इस मास की पूर्णिमा तिथि पर रक्षा बंधन का उत्सव मनाया जाता है। इसलिए, 19 अगस्त को राखी बांधने का त्योहार बहनों के लिए विशेष महत्व रखता है और इस दिन राखी का पवित्र धागा भाइयों की कलाई पर बांधा जाता है।