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Raksha Bandhan 2024 Main Kab hai: इस शुभ योग में मनेगा रक्षाबंधन राखी का त्यौहार, शुभ मुहूर्त, राखी बांधने की विधि भी जानें।

Table of index

  • रक्षाबंधन पर्व क्या है
  • रक्षाबंधन पर्व क्यों मनाते हैं
  • रक्षाबंधन 2024 कब है
  • रक्षाबंधन की शुरुआत कब से हुई
  • रक्षाबंधन से जुड़ीं कथाएं और ऐतिहासिक कारण
  • रक्षाबंधन पूजा विधि।
  • रक्षाबंधन की कहानी

रक्षाबंधन पर्व क्या है । What is Rakshabandhan festival?

रक्षाबंधन हिंदुओं का महत्वपूर्ण त्यौहार है श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन हर साल यह त्यौहार मनाया जाता है रक्षाबंधन का यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है इस खास अवसर पर बहने शुभ मुहूर्त में अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती है और अपने भाई की लंबी आयु की कामना करती हैं और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं शास्त्रों की माने तो रक्षाबंधन का यह त्यौहार शुभ मुहूर्त में ही मनाना चाहिए इस दिनभद्रकाल नहीं होना चाहिए क्योंकि किसी भी शुभ कार्य में भद्राकाल का होना शुभ नहीं माना जाता इसमें किसी भी शुभ कार्य को करनाक वर्जित बताया गया है।

रक्षाबंधन 2024 का शुभ मुहूर्त | Rakshabandhan 2024 Date And Time

Date | तारीख 19 August 2024
Day | दिन Monday | सोमवार
रक्षाबंधन 2024 शुभ मुहूर्त 01:35 से 09:08 तक
राखी पूर्णिमा प्रारम्भ 19 अगस्त 2024, 01:55 तक
राखी पूर्णिमा समाप्त 19 अगस्त 2024, 09:08 तक

रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है । why rakshabandan is celebrated

रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहनों के लिए हमेशा से खास रहा है इसको शुरू करने के पीछे कई कहानियां व कई कारण है शास्त्रों के अनुसार रक्षाबंधन से जुड़ी कई बातें कथा बताई जाती है जो रक्षाबंधन को शुरुआत की बात कहते हैं और इस त्यौहार में इतिहास का भी जुड़ाव है वैसे तो दोस्तों हम सभी जानते हैं हर त्योहार की अपनी अलग अलग कथा या कहानी होती है जिसके स्वरूप हम इनको मनाते हैं उसी प्रकार रक्षाबंधन का भी पर्व कई धार्मिक कहानियों से संबंध रखते हैं इस दिन हर बहन अपने भाई को राखी बांधती हैऔर उसकी लंबी आयु की कामना करती है ऐसा करने से भाई बहन के रिश्ते मजबूत होते हैं आइए दोस्तों आज हम अपनी पोस्ट के माध्यम से आपको यह भी बताना चाहेंगे इसकी शुरुआत कहां से हुई और कब से हुई।

रक्षाबंधन कब से शुरू हुआ | When did Rakshabandhan start

श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व वैसे तो कई कारणों से मनाया जाता है शास्त्रों के अनुसार इसको शुरू करने की कुछ धार्मिक व ऐतिहासिक कथाएं हैं जिनके बारे में पूरी जानकारी होना अति आवश्यक है इसको शुरू करने के तीन मुख्य कारण है।

रक्षाबंधन से जुड़ीं कथाएं और ऐतिहासिक कारण | Stories related to Rakshabandhan

वैसे तो हम सभी जानते हैं कि सदियों से चले आ रहे इस त्यौहार को मनाने का मुख्य कारण भाई बहन का अटूट रिश्ता है बंधन है प्यार है इस दिन हर बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसको सच्चे मन से दुआएं देती है वहीं दूसरी तरफ भाई भी अपनी बहन को उनकी रक्षा का वचन देता है लेकिन इसके पीछे के कुछ मुख्य कारण है जिनमें से पहला कारण यह है।

कृष्ण और द्रौपदी

इसके पीछे का दूसरा कारण यह भी है कि जब श्री कृष्ण ने अपने भाई शिशुपाल को मारने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से प्रहार किया था. शीशपाल की गर्दन कट कर नीचे गिर गई और शीशपाल का अंत हो गया जब सुदर्शन चक्र वापस आ रहा था तब श्रीकृष्ण की उंगली कट गई तब पांडवों की पत्नी द्रोपति ने अपनी साड़ी में से एक कपड़ा फाड़ कर उनकी कटी हुई उंगली पर बांधा तब श्री कृष्ण जी ने द्रोपदी से कहा कि आज से मैं तुम्हें अपनी बहन मानता हूं और सदैव ही मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा तभी से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा।

भगवान विष्णु एवं राजा बाली

सदियों पहले दैत्यों के राजा बलि ने 110 यज्ञ पूर्ण कर लिए थे जिस वजह से देवताओं में डर बढ़ने लगा कहीं राजा बलिअपनी शक्ति से उन पर भी अपना अधिकार ना कर ले और इसी डर से सभी देवगढ़ भगवान विष्णु के समक्ष पहुंचे और उनको सारी बात बताई तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का अवतार लिया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे तब राजा बलि ने उस ब्राह्मण को भिक्षा के रूप में तीन पग भूमि देने का निश्चय किया भगवान विष्णु ने एक पग में स्वर्ग दूसरे पग में पृथ्वी को मांग लिया जब राजा बलि ने तीसरा पग आगे बढ़ते देखा तो वह परेशान हो गया और उसकी समझ में नहीं आ रहा था क्या करें और यह हो क्या रहा है

तब राजा ने अपना सिर ब्राह्मण देव के चरणों में रख दिया और कहा आप अपना तीसरा भाग यहां रखें और इस प्रकार राजा बलि से स्वर्ग और पृथ्वी पर राज्य करने का अधिकार छीन लिया गया और और राजा बलि रतन मैं चले गए राजा बलि ने अपनी तपस्या से अपनी भक्ति से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके हर समय अपने सामने रहने का वचन मांग लिया और इस प्रकार भगवान विष्णु को राजा बलि का द्वारपाल बनना पड़ा जिस कारण देवी लक्ष्मी दुविधा में पड़ गई और वह विष्णु जी को प्रशासन से वापस लाना चाहती थी तब वह अपनी समस्या को लेकर नारद जी के पास गई.तब नारद जी ने उनको उनकी समस्या का हल बताया. तब माता लक्ष्मी राजा बलि के पास पहुंची और उन्होंने राजा बलि को राखी बांधकर अपना भाई बना लिया और उपहार के रूप में उन्होंने विष्णु जी को मांग लिया उस दिन सावन मास की पूर्णिमा थी तभी से यह रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है।

रानी कर्णावती एवं हिमायू की राखी का कारण।

इस पर्व को मनाने का एक ऐतिहासिक कारण भी है जिससे इस त्यौहार की शुरुआत हुई है इतिहास के अनुसार सिंधु घाटी की सभ्यता से रक्षाबंधन का इतिहास जुड़ा है रक्षाबंधन एक ऐसा त्यौहार है जिसका इतिहास करीब 6000 साल पुराना है और बताया यह भी जाता है कि इसकी शुरुआत रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं ने की थी मध्यकालीन युग में राजपूत और मुसलमानों के बीच जंग चल रही थी उसी दौरान चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने सुल्तान बहादुर शहर से खतरा देखते हुए हिमायू को राखी भेजी थी तब हिमायू ने उनकी रक्षा करके उन्हें अपनी बहन का दर्जा दिया था ऐसा माना जाता है कि तभी तुम देख लो से रक्षाबंधन की शुरुआत हुई लेकिन इसके पीछे और भी बहुत से कारण हैं और कहानियां हैं जिनके बारे में हम आगे बात करेंगे।

रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त ।

भाई बहनों के प्रेम का प्रतीक माना जाने वाला यह पर्व भगवान शिव को समर्पित होता है इस पवित्र महीने में भगवान शिव सहित पूरे परिवार की उपासना की जाती है और सावन मास की इस पूर्णिमा का यह पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण होता है इस दिन बहनें अपने भाई को राखी बांधती है जिस दिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि राखी बांधते समय भद्राकाल नहीं होनी चाहिए क्योंकि भद्रकाली मैं कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित बताया गया है इसलिए शुभ मुहूर्त में ही राखी बांधनी चाहिए।

भद्रा काल का समय।

गत वर्ष की तरह पूर्णिमा तिथि को इस वर्ष भी भद्राकाल पड़ेगा जब पूर्णिमा तिथि रहेगी तभी भद्रकाल भी आरंभ हो जाएगा इसलिए इस वर्ष हमें भद्राकाल का समय ध्यान में रखते हुए हीअपने भाई को राखीबांधनी चाहिए भद्राकाल कब से कब तक रहेगा कब समाप्त होगा कब शुभ मुहूर्त आएगा इस बात की पूरी जानकारी हम आप से अगले पेज में सांझा करेंगे.

रक्षाबंधन पूजा विधि । Rakshabandhan Puja Vidhi

आइए आज हम इस पर्व की पूजा विधि के बारे में जानेंगे कि किस प्रकार त्रिलोक को जीतने राजा बलि देवी लक्ष्मी जी के राखी के धागे की डोर से ऐसे बन गए जैसे मानो संपूर्ण संसार का प्रेम उसमें समाहित हो गया उसी प्रकार इस भाई बहनों का प्रेम है

  • पूजा विधि इस प्रकार है सबसे पहले पवित्र स्नान करना चाहिए और सभी देवी देवताओं को प्रणाम करना चाहिए अपनी कुलदेवी और देवताओं का आशीर्वाद लेना चाहिए.।
  • एक चांदी पीतल या त्तांबे की थाली में राखी रखें अक्षत रोली या सिंदूर छोटी कटोरी में रखें और उसे गिला करें फिर राखी के थाल को पूजा स्थल पर रखें और सबसे पहले राखी बाल गोपाल या अपने इष्ट देव को अर्पित करें।
  • इसके बाद भगवान से प्रार्थना करें राखी बांधते समय भाई का मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए ऐसा करने से आपकी राखी को देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • राखी बांधते समय भाइयों के सिर पर रुमाल रखना चाहिए बहन सबसे पहले भाई के माथे पर रोली का टीका लगाएगी उसके ऊपर अक्षत लगाएगी और कुछ अक्षत भाई के ऊपर छोड़ के भाई की नजर उतारने के लिए दीपक जलाकर उसकी आरती करेगी।
  • उसके पश्चात भाई की कलाई में राखी का धागा मंत्र बोलते हुए बांधे ऐसा करने से राखी के धागों में शक्ति का संचार होता है।
  • भाई बहन एक दूसरे को मिठाई खिलाकर एक दूसरे का मुंह मीठा करें फिर भाई अपनी बहन के चरण स्पर्श करें तत्पश्चात भाई उनकी रक्षा का वचन देकर उनको उपहार स्वरूप कुछ भी देकर उनके सुखी जीवन की कामना करें।

रक्षाबंधन की कहानी । Story of Rakshabandhan

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि श्रावण मास का महीना शक्ति का एक उत्तम माना जाता है इस महीने में पूरा संसार खुशी और उत्साह मनाता है और इसी माह की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का पर्व भी मनाया जाता है एक समय की बात है एक नगर में एक साहूकार रहता था उसके 3 पुत्र और 3 बहू रहती थी साहूकार की सबसे छोटी बहू बहुत सुशील और संस्कारी थी इसके साथ ही वह कृष्ण भगवान की परम भक्त थी सावन के महीने में साहूकार की दोनों बड़ी बहू अपने-अपने पीहर जाने की तैयारी करने लगे सुबह जल्दी उठकर घर का सारा काम करने लगे तो छोटी बहू ने पूछा क्या बात है दीदी आज आप दोनों इतनी जल्दी जल्दी काम क्यों कर रहे हैं तो उसकी जेठानी बोले कल रक्षाबंधन का त्यौहार है हमको अपने भाई को राखी बांधने अपने अपने पीहर जाना है

वह बोली तेरा तो कोई भाई नहीं है तू क्या जाने रक्षाबंधन का महत्व भाई बहन के रिश्ते का महत्व छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी और वह भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा के सामने जाकर रोने लगी और बोली मेराआज मेराभी कोई भाई होता तो आज मैं भी अपने पीहर जाती अगले दिन रक्षाबंधन का त्योहार था तभी छोटी बहू के दूर के रिश्ते का एक भाई आया और साहूकार से बोला यह मेरी बहन है मैं इसका भाई हूं और आज के इस पर्व पर मैं इसे अपने साथ ले जाने आया हूं तब साहूकार के बेटे ने कहा लेकिन इसका तो कोई भाई नहीं है कौन हो तुम उस आदमी ने साहूकार को समझाया तत्पश्चात साहूकार और उसका बेटा मान गया और छोटी बहू को उसके साथ भेजने को तैयार हो गए किंतु अभी भी उसके पति के मन में शंका थी वह बोलाआप इसे ले तो जाओ किंतु इसे वापस लेने मैं स्वयं आऊंगा ऐसा कह कर उसने अपनी पत्नी को उसके साथ भेज दिया रास्ते में चलते हुए छोटी बहू ने अपने भाई से कहा भाई आप इतने सालों से कहां थे और रक्षाबंधन पर मुझसे राखी बनवाने क्यों नहीं आए तब उसका भाई बोला बहन में सात समंदर पार परदेस में कमाने गया था

जब वह दोनों अपने घर पहुंचे तो उसकी भाभी ने अपनी ननद का स्वागत किया खूब आवभगत की तब दोनों भाई बहन ने रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया ऐसे ही हंसी खुशी समय बीत गया 1 दिन छोटी बहू का पति उसे लेने आया महल जैसा घर और ऐसो आराम देखकर वह चकित रह गया भाई और भाभी ने उसकी भी खूब आव भगत की अगले दिन सुबह के समय है भाई और भाभी ने उसे उसके घर के लिए विदा किया विदा करते समय उसे खूब सोना चांदी हीरा जवाहरात देकर विदा किया थोड़ी दूर जाने पर छोटी बहू के पति का गलती से अपना वही भूलआया हूं मैं अभी उसे लेकर आता हूं तो छोटी बहू बोली अरे कोई बात नहीं हुआ तो आपका पुराना करता था अब आप इतनी दूर जाकर उसको लेने जाएंगे किंतु वह नहीं माना बोला मैं अभी जाकर लेकर आता हूं ऐसा कहकर वह दोनों वापस चल दिए वजह से वहां भाई के घर पहुंचे तो देखा भाई के घर की जगह एक बड़ा सा पीपल का पेड़ है और उस पेड़ पर उसके पति का कुर्ता टंगा हुआ था

यह देख कर वह बहुत नाराज हुआ और अपनी पत्नी से बोला यह क्या काला जादू है कौन था वह जो तेरा भाई बनकर तुझे लेकर यहां आया था मुझे तो शुरू से ही शक था इसीलिए मैं तुझे लेने आया था कौन था वह ऐसी बात करते हुए वह अपनी पत्नी को मारने लगा कि तभी भगवान श्रीकृष्ण वहां स्वयं प्रकट हुए और भोले मत मारो इसे यह मेरी बहन है इस साल रक्षाबंधन पर यह मुझे राखी बांधने आई थी और अब मैंने उसका भाई होने का फर्ज निभाया है मैं इसकी रक्षा करने आया हूं इसे मैंने अपनी बहन माना है यह सब देखकर और सुनकर उसका पति चकित रह गया और भगवान श्री कृष्ण को देखकर उनके चरणों में गिर गया और उसने भगवान से अपनी की हुई गलतियों की क्षमा मांगी

FAQs :-

क्या रात को राखी बांधने का अपना अलग महत्व होता है?

नहीं, रात को राखी बांधने का कोई विशेष महत्व नहीं होता है। रक्षा बंधन का सार भाई-बहन के बीच की भावनाओं और रिश्ते में होता है, चाहे वह दिन के किसी भी समय हो।

क्या रात में राखी बांधने का कोई शास्त्रीय प्रमाण है?

राखी बांधने का कोई विशेष शास्त्रीय प्रमाण नहीं है जो रात को बंधा जा सके। रक्षा बंधन का त्योहार समय के अनुसार अनुकूलित और लचीला होता है, जिससे व्यक्तिगत पसंद और परिस्थितियों के आधार पर चुनाव किया जा सकता है।

19 अगस्त को राखी कब बांधी जाएगी?

19 अगस्त को राखी बांधने का त्योहार रक्षा बंधन के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को आता है। श्रावण मास भारतीय पंचांग में हिंदू धर्म के अनुसार महत्वपूर्ण माना जाता है और इस मास की पूर्णिमा तिथि पर रक्षा बंधन का उत्सव मनाया जाता है। इसलिए, 19 अगस्त को राखी बांधने का त्योहार बहनों के लिए विशेष महत्व रखता है और इस दिन राखी का पवित्र धागा भाइयों की कलाई पर बांधा जाता है।