देव सैनी एकादशी व्रत आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष तिथि को मनाया जाता है इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है इस व्रत को सच्चे हृदय से करने से प्रत्येक मनोकामनाओं की पूर्ति होती है इसके अलावा मनुष्य की आयु और आय में भी वृद्धि होती है इसलिए देव सैनी व्रत को करना अत्यंत आवश्यक है प्रत्येक व्यक्ति को यह व्रत अवश्य करना चाहिए
प्राणों के अनुसार भगवान विष्णु जी राजा बलि को दिए हुए अपने वचन को निभाने के लिए हर साल पाताल लोक में वामन अवतार में पहुंचे है और वहां 4 महीने रहते हैं मान्यताओं के अनुसार जब भगवान विष्णु अपने 52 अवतार में थे तब विष्णु जी ने राजा बलि से चार पग में सब कुछ दान में मांग लिया तब राजा बलि उनकी महिमा को पहचान गए और उन्होंने भगवान विष्णु को सब कुछ दान में दे दिया इसके बाद राजा बलि ने घोर तप करके विष्णु जी को प्रसन्न किया और भगवान विष्णु को अपने साथ रहने का वरदान मांग लिया और इस तरह से भगवान विष्णु ने अपना वचन निभाया और इसी वजह से इस एकादशी को अधिक महत्व दिया जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी मनाने के पीछे एक मुख्य कारण है यह समय भगवान विष्णु के आराम का समय होता है भगवान विष्णु चार माह के लिए आराम करने चले जाते हैं इससे 4 महीना में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है क्योंकि इस समय भगवान विष्णु के सायन का समय होता है इसके अलावा इस दिन से ही चातुर्मास की भी शुरुआत होती है ऐसा कहा जाता है कि जब से 4 महीना में श्री विष्णु निद्रा में लीन हो जाते हैं तब सृष्टि के संचालन का कार्य भगवान शिव के हाथों में आ जाता है की कारण 4 महीने तक भोले बाबा की गन सुनाई देती है इसके अलावा हमारे शरीर मैं जितने भी विकार होते हैं वह सारे बेकार दूर हो जाते हैं
तारीख | 17 जुलाई 2024 |
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तिथियां | बुधवार | Wednesday |
एकादशी तिथि प्रारंभ | 16 जुलाई 2024 को रात्रि 08:33 बजे |
एकादशी तिथि समाप्त | 17 जुलाई 2024 को रात्रि 09:02 बजे |
देव सैनी एक देव सयानी एकादशी का दूसरा नाम पद्मा एकादशी है आसान मा शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव सयानी एकादशी के नाम से जाना जाता है वैसे इसको देव्पत्र एकादशी और सैनिक एकादशी के नाम से भी जाना जाता है इसके व्रत से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और इस समय भगवान विष्णु के निद्रा का समय होता है इसलिए इसका मुख्य नाम देव सैनी एकादशी है
पुराणों के अनुसार वैसे तो साल में जो 24 एकादशी पड़ती है वह सभी एकादशी महत्वपूर्ण होती है किंतु सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण एकादशी निर्जला एकादशी होती है क्योंकि इस निर्जला एकादशी में हम बिना जल ग्रहण किया इस व्रत को करते हैं और यह साल में एक बार आती है इसलिए इस व्रत को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है
एकादशी के दिन जल्दी उठकर नित्य कार्य से निपट कर स्नान करने के बाद वस्त्र धारण करें धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी के व्रत में स्त्रियों को बाल धोकर नहीं नहाना चाहिए
वही इस दिन साबुन शैंपू का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए क्योंकि इस व्रत में ऐसा करना शुभ नहीं माना जाता
इसके बाद घर के पूजा स्थल की साफ सफाई करें और पूर्व दिशा की तरफ एक लकड़ी की चौकी रखें इस पर एक पीला कपड़ा बिछाए तत्पश्चात चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्थापित करें इसके बाद विष्णु भगवान को चंदन का तिलक लगाकर दिल फूल माला फल नावेद आदि समर्पित करें
और इस बात का ध्यान रखें की विष्णु जी की पूजा में तुलसी अवश्य चढ़ाएं और भूलकर भी चावल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जब यह सारी प्रक्रिया पूर्ण हो जाए तब इस व्रत की कथा को अवश्य पढ़े या सुने
इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम विष्णु चालीसा विष्णु मंत्र तुलसी मंत्र और विष्णु स्तुति का पाठ करने से जीवन में सुख समृद्धि का वास होता है
अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और तुलसी की पूजा अवश्य करें और इस व्रत में जल देने से बचे लेकिन दीपक अवश्य प्रज्वलित करें
सतयुग में, मांधाता नगर में एक चक्रवर्ती सम्राट शासन करते थे। एक दिन उनके राज्य में तीन वर्षों तक की भारी सूखा पड़ गया। प्रजा अत्यंत दुख और हाहाकार मच गया । सम्राट के दरबार में सभी नागरिक एकत्र हुए और दुःख भरी दुहाई दी। सम्राट ने ईश्वर से प्रार्थना की कि कहीं उन्होंने किसी बुरे कर्म का अवगत नहीं किया है, और फिर भी उनके राज्य में सूखा पड़ गया है। अपने दुखों का समाधान ढूंढने के लिए, सम्राट जंगल में अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे। अंगिरा ऋषि ने सम्राट से उनके आगमन का कारण पूछा। सम्राट ने कर्मबद्ध होकर ऋषि से प्रार्थना की, "हे ऋषिवर, मैंने सभी धर्मों का पालन किया है, फिर भी मेरे राज्य में तीन वर्षों से सूखा है। अब प्रजा के सब्र का बंधन टूट गया है और उनका दुःख मुझसे देखा नहीं जा रहा है। कृपया इस विपत्ति से बाहर निकलने का कोई मार्ग बताएं।" तब ऋषि ने कहा कि राजन, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करके भगवान विष्णु को प्रसन्न करो। उनकी कृपा से वर्षा अवश्य होगी।
सम्राट ने राजधानी लौट कर आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी का व्रत माना और उसके प्रभाव से उनके राज्य में मूसलाधार वर्षा हुई और खुशियाँ बिखेर गईं।