devshayani ekadashi vrat or puja vidhi

Devshayani Ekadashi 2024 date: कब है देवशयनी एकादशी? जानिए इसका महत्व तो और होने वाले फायदे

Table of index

  • देवशयनी एकादशी क्या है
  • देवशयनी एकादशी महत्व
  • देवशयनी एकादशी व्रत क्यों रखा जाता है
  • देवशयनी एकादशी व्रत कब है
  • देवशयनी एकादशी का दूसरा नाम क्या है
  • कौन सी एकादशी अधिक महत्वपूर्ण है
  • देवशयनी एकादशी पूजा विधि
  • देवशयनी एकादशी की कथा

देवशयनी एकादशी क्या है | Devshayani Ekadashi kiya hai

देव सैनी एकादशी व्रत आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष तिथि को मनाया जाता है इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है इस व्रत को सच्चे हृदय से करने से प्रत्येक मनोकामनाओं की पूर्ति होती है इसके अलावा मनुष्य की आयु और आय में भी वृद्धि होती है इसलिए देव सैनी व्रत को करना अत्यंत आवश्यक है प्रत्येक व्यक्ति को यह व्रत अवश्य करना चाहिए

देवशयनी एकादशी महत्व | What is Devshayani Ekadashi's importance

प्राणों के अनुसार भगवान विष्णु जी राजा बलि को दिए हुए अपने वचन को निभाने के लिए हर साल पाताल लोक में वामन अवतार में पहुंचे है और वहां 4 महीने रहते हैं मान्यताओं के अनुसार जब भगवान विष्णु अपने 52 अवतार में थे तब विष्णु जी ने राजा बलि से चार पग में सब कुछ दान में मांग लिया तब राजा बलि उनकी महिमा को पहचान गए और उन्होंने भगवान विष्णु को सब कुछ दान में दे दिया इसके बाद राजा बलि ने घोर तप करके विष्णु जी को प्रसन्न किया और भगवान विष्णु को अपने साथ रहने का वरदान मांग लिया और इस तरह से भगवान विष्णु ने अपना वचन निभाया और इसी वजह से इस एकादशी को अधिक महत्व दिया जाता है।

देवशयनी एकादशी व्रत क्यों रखा जाता है | Devshayani Ekadashi Rakhne ka karan

हिंदू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी मनाने के पीछे एक मुख्य कारण है यह समय भगवान विष्णु के आराम का समय होता है भगवान विष्णु चार माह के लिए आराम करने चले जाते हैं इससे 4 महीना में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है क्योंकि इस समय भगवान विष्णु के सायन का समय होता है इसके अलावा इस दिन से ही चातुर्मास की भी शुरुआत होती है ऐसा कहा जाता है कि जब से 4 महीना में श्री विष्णु निद्रा में लीन हो जाते हैं तब सृष्टि के संचालन का कार्य भगवान शिव के हाथों में आ जाता है की कारण 4 महीने तक भोले बाबा की गन सुनाई देती है इसके अलावा हमारे शरीर मैं जितने भी विकार होते हैं वह सारे बेकार दूर हो जाते हैं

देवशयनी एकादशी व्रत कब है | Devshayani Ekadashi Kab Hai | date

तारीख 17 जुलाई 2024
तिथियां बुधवार | Wednesday
एकादशी तिथि प्रारंभ 16 जुलाई 2024 को रात्रि 08:33 बजे
एकादशी तिथि समाप्त 17 जुलाई 2024 को रात्रि 09:02 बजे

देवशयनी एकादशी का दूसरा नाम क्या है | What is the other name of Devshayani Ekadashi

देव सैनी एक देव सयानी एकादशी का दूसरा नाम पद्मा एकादशी है आसान मा शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव सयानी एकादशी के नाम से जाना जाता है वैसे इसको देव्पत्र एकादशी और सैनिक एकादशी के नाम से भी जाना जाता है इसके व्रत से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और इस समय भगवान विष्णु के निद्रा का समय होता है इसलिए इसका मुख्य नाम देव सैनी एकादशी है

कौन सी एकादशी अधिक महत्वपूर्ण है | Which Ekadashi is more important

पुराणों के अनुसार वैसे तो साल में जो 24 एकादशी पड़ती है वह सभी एकादशी महत्वपूर्ण होती है किंतु सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण एकादशी निर्जला एकादशी होती है क्योंकि इस निर्जला एकादशी में हम बिना जल ग्रहण किया इस व्रत को करते हैं और यह साल में एक बार आती है इसलिए इस व्रत को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है

देवशयनी एकादशी पूजा विधि | Devshayani Ekadashi puja vidhi

एकादशी के दिन जल्दी उठकर नित्य कार्य से निपट कर स्नान करने के बाद वस्त्र धारण करें धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी के व्रत में स्त्रियों को बाल धोकर नहीं नहाना चाहिए

वही इस दिन साबुन शैंपू का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए क्योंकि इस व्रत में ऐसा करना शुभ नहीं माना जाता

इसके बाद घर के पूजा स्थल की साफ सफाई करें और पूर्व दिशा की तरफ एक लकड़ी की चौकी रखें इस पर एक पीला कपड़ा बिछाए तत्पश्चात चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्थापित करें इसके बाद विष्णु भगवान को चंदन का तिलक लगाकर दिल फूल माला फल नावेद आदि समर्पित करें

और इस बात का ध्यान रखें की विष्णु जी की पूजा में तुलसी अवश्य चढ़ाएं और भूलकर भी चावल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जब यह सारी प्रक्रिया पूर्ण हो जाए तब इस व्रत की कथा को अवश्य पढ़े या सुने

इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम विष्णु चालीसा विष्णु मंत्र तुलसी मंत्र और विष्णु स्तुति का पाठ करने से जीवन में सुख समृद्धि का वास होता है

अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और तुलसी की पूजा अवश्य करें और इस व्रत में जल देने से बचे लेकिन दीपक अवश्य प्रज्वलित करें

देवशयनी एकादशी की कथा | Devshayani Ekadashi Vrat Katha

सतयुग में, मांधाता नगर में एक चक्रवर्ती सम्राट शासन करते थे। एक दिन उनके राज्य में तीन वर्षों तक की भारी सूखा पड़ गया। प्रजा अत्यंत दुख और हाहाकार मच गया । सम्राट के दरबार में सभी नागरिक एकत्र हुए और दुःख भरी दुहाई दी। सम्राट ने ईश्वर से प्रार्थना की कि कहीं उन्होंने किसी बुरे कर्म का अवगत नहीं किया है, और फिर भी उनके राज्य में सूखा पड़ गया है। अपने दुखों का समाधान ढूंढने के लिए, सम्राट जंगल में अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे। अंगिरा ऋषि ने सम्राट से उनके आगमन का कारण पूछा। सम्राट ने कर्मबद्ध होकर ऋषि से प्रार्थना की, "हे ऋषिवर, मैंने सभी धर्मों का पालन किया है, फिर भी मेरे राज्य में तीन वर्षों से सूखा है। अब प्रजा के सब्र का बंधन टूट गया है और उनका दुःख मुझसे देखा नहीं जा रहा है। कृपया इस विपत्ति से बाहर निकलने का कोई मार्ग बताएं।" तब ऋषि ने कहा कि राजन, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करके भगवान विष्णु को प्रसन्न करो। उनकी कृपा से वर्षा अवश्य होगी।

सम्राट ने राजधानी लौट कर आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी का व्रत माना और उसके प्रभाव से उनके राज्य में मूसलाधार वर्षा हुई और खुशियाँ बिखेर गईं।