basoda celebration and story of shitala mata vrat

Basoda 2025 | बासोड़ा कब है 2025 | शीतला अष्टमी का व्रत कब रखा जाएगा?, जाने शीतला व्रत कथा और शीतला माता की कहानी

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  • शीतला माता व्रत क्या है
  • शीतला माता व्रत कब है 2025
  • शीतला माता का महत्व
  • शीतला माता की कथा

शीतला माता व्रत क्या है | What is Shitala fast?

बसोड़ा, जिसे शीतला सप्तमी या शीतला अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है, एक हिन्दू त्योहार है जो शीतला माता की पूजा के लिए समर्पित है। यह होली के बाद चैत्र महीने की सप्तमी या अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन, विशेष रूप से उत्तरी भारत में, परिवार के सदस्य पिछले दिन बने ठंडे भोजन का सेवन करते हैं, इसलिए इसे बसोड़ा कहा जाता है।

बसोड़ा कब है 2025 | Shitala Saptami Date 2025

Date | तारीख शनिवार, 22 मार्च 2025

शीतला माता का महत्व | Importance of Shitala Mata

शीतला माता को स्वास्थ्य और रोगों की देवी माना जाता है। यह माना जाता है कि शीतला माता की पूजा करने से परिवार को चेचक, खसरा, और अन्य संक्रामक रोगों से मुक्ति मिलती है। शीतला माता की पूजा से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।

शीतला माता की कथा

बहुत समय पहले की बात है एक बार शीतला माता ने सोचा चलो आज देखूं की धरती पर मेरी पूजा कौन-कौन करता है और कौन-कौन मुझे मानता है यह सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डोंगरी गांव में आई और शीतला माता ने गांव में आकर देखा कि उनका कोई भी मंदिर नहीं है और ना ही पूरे गांव में मेरी कोई पूजा करता है जब शीतला माता गांव की गलियों में घूम रही थी तभी एक मकान की छत से किसी ने चावल का उबला पानी नीचे फेक वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में फफोले पड़ गए और शीतला माता के पूरे शरीर में जलन होने लगी तब शीतला माता पूरे गांव में इधर-उधर भाग कर चिल्लाने लगी अरे मैं जल गई मेरा शरीर तप रहा है मेरी मदद करो शीतला माता चिल्लाती रही किंतु उस गांव में किसी ने भी शीतला माता की मदद नहीं कि तब उस गांव में एक कुम्हारिन बैठी थी उसे कुम्हारिन ने देखा कि यह बुडी माई तो बहुत जल गई है

उनके पूरे शरीर में फफोले व जलन है तब उस कुम्हारिन ने कहा मां तुम यहां आकर बैठो मैं तुम्हारे शरीर पर ठंडा पानी डाल देती हूं जिससे आपकी जलन कुछ कम हो जाएगी तब कुम्हारिन उसे बुडी माई के ऊपर खूब सारा ठंडा पानी डाला और बोली है माई मेरे घर में रात की रावड़ी रखी है थोड़ा दही भी है तुम दही रावड़ी खा लो जिससे तुम्हारी जलन कुछ कम हो जाएगी फिर जब बूढी माई ने ठंडी ज्वार की आटे की रावड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली तब उस कुम्हारिन कहा आओ माई बैठो मैं तुम्हारी मैं चोटि बना देती हूं तुम्हारे बाल बहुत बिखरे हैं और वह कुम्हारिन बुडी माई की चोटि गूथन लगी कुम्हारिन की नजर तब अचानक बुडी माई के सर के पीछे पड़ी तो कुम्हारिन ने देखा कि एक आंख बुडी माई के बालों के अंदर छुपी है तो वह डर के भागने लगी तब उस बुडी माई ने कहा रुक जाओ बेटी डरो नहीं मैं कोई भूत प्रेत नहीं हूं मैं शीतला माता हूं मैं तो इस धरती पर यह देखने आई थी

कि कौन मुझे मानता है और कौन मेरी पूजा करता है इतना कहकर माता चारभुजा वाली हीरे जावारात के आभूषण पहन सर पर स्वर्ण मुकुट धारण किए अपने असली रूप में प्रकट हो गई माता के दर्शन कर कुम्हारिन सोचने लगी कि अब मैं गरीब इस माता को कहां बेटाऊँ तब माता बोली है बेटी तुम किस सोच में पड़ गई तब वह कुम्हरण हाथ जोड़कर आंखों में आंसू भरकर कहा मेरे घर में चारों तरफ दरिद्रता भिखरी हुई है मैं आपको कहां बेटाऊँ मेरे घर में ना तो चौकी है न बैठने को आसान तब माता उससे प्रसन्न होकर गधे पर बैठ गई शीतला माता के एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में ढलिया लेकर उस कुम्हरण के घर की दरिद्रता को झाड़कर ढलिया में भरकर फेंक दिया फिर शीतला माता ने उसे कुम्हरण से कहा बेटी मैं तेरी सच्ची भक्ति से मैं प्रसन्न हूं

अब तुझे जो भी चाहिए मुझेसे वरदान मांग ले तब कुम्हारिन ने हाथ जोड़कर कहा है माता मेरी इच्छा है कि अब आप इसी गांव में स्थापित होकर यही रहे और जिस प्रकार आपने मेरे घर की दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ कर दिया इस प्रकार जो भी भक्ति होली के बाद सप्तमी को पूरे भक्ति भाव से आपकी पूजा करें आपको ठंडा जल चढ़ाएं दही व बासी भोजन कराई उसकी घर की दरिद्रता को साफ करना और आपकी पूजा करने वाली हर नारी जाति का अखंड सुहाग रखना उसकी गोद हमेशा भारी रखना इसके अलावा जो भी पुरुष शीतला सप्तमी को नाइ के यहां बाल ना कटवाए धोबी के यहां कपड़े ना धुलाई और पुरुष आप पर नारियल व ठंडा जल चढ़ाएं और परिवार सहित बासी भोजन करें उसके काम धंधे व्यापार में कभी भी दरिद्रता आए तब माता ने कहा कि है बेटी जो तुमने वरदान मांगा है मैं तुम्हें सब वरदान देती हूं है बेटी तुझे आशीर्वाद देती हूं कि मेरी पूजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर मुख्य रूप से केवल कुम्हार जाति का ही रहेगा तभी इस दिन से डोंगरी गांव में शीतला माता स्थापित हो गई और तभी से उस गांव का नाम हो गया सील की डोंगरी शीतला माता का मुख्य मंदिर है शीतला मां सप्तमी पर वहां विशाल मेला लगता है तथा इस कथा को पढ़ने से घर की दरिद्रता का नाश होता है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं शीतला माता जैसे आपने उस कुम्हारिन की दरिद्रता को दूर किया वैसे ही अपने सभी भक्तों पर अपनी कृपा सदा बनाए रखना और इस कथा को होली के बाद बासोडे के दिन कहा जाता है

बसोड़ा पर्व की परंपराएं | Traditions of Basoda festival

ठंडा भोजन: बसोड़ा के दिन ठंडे भोजन का सेवन करने की परंपरा है। इस दिन घर में कोई खाना नहीं पकाया जाता। महिलाएं एक दिन पहले भोजन बनाती हैं और अगले दिन परिवार के सदस्य वही ठंडा भोजन खाते हैं। यह माना जाता है कि ठंडा भोजन खाने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।

शीतला माता की पूजा: इस दिन महिलाएं शीतला माता की पूजा करती हैं। वे शीतला माता की मूर्ति या तस्वीर को फूल, हल्दी, चावल, गुड़, और जल चढ़ाकर पूजती हैं। कई स्थानों पर महिलाएं शीतला माता के मंदिर में जाकर भी पूजा-अर्चना करती हैं।

भोग और प्रसाद: पूजा के दौरान ठंडे भोजन का भोग शीतला माता को अर्पित किया जाता है। इसके बाद यह भोजन प्रसाद के रूप में परिवार और पड़ोसियों में बांटा जाता है।

सफाई और स्वच्छता: बसोड़ा के दिन घर और आसपास की सफाई करने का विशेष महत्व है। इस दिन को स्वच्छता के साथ जोड़कर देखा जाता है, जिससे बीमारियों का प्रकोप कम हो।

धार्मिक और सामाजिक महत्व

बसोड़ा का पर्व धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शीतला माता की कृपा प्राप्त करने का एक माध्यम है। इसके अलावा, यह पर्व सामाजिक एकता और सामूहिकता को भी बढ़ावा देता है। परिवार और समाज के लोग एक साथ मिलकर इस पर्व को मनाते हैं, जो आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ाता है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। इसमें प्रस्तुत जानकारी और तथ्यों की सटीकता और संपूर्णता के लिए त्यौहार खोज डॉट कॉम जिम्मेदार नहीं है।