मान्यता के अनुसार गणगौर का पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है इस व्रत में माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है गणगौर की पूजा चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है इस दिन कुंवारी कन्याएं व सुहागन स्त्रियां शिवजी व माता पार्वती की पूजा करती हैं गणगौर की पूजा स्त्रियां अपने अखंड सुहाग व सुख समृद्धि के लिए करती हैं गणगौर का अर्थ गण का अर्थ होता है शिव और गौर का अर्थ होता है माता पार्वती जिसको हम गणगौर पूजा कहते हैं
2024 की गणगौर तिथि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, जो कि 11 अप्रैल 2024 को है, गणगौर मनाई जाएगी। यह त्योहार चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन को मनाया जाता है। गणगौर के इस दिन महिलाएं मिट्टी से शिव और पार्वती की मूर्तियाँ बनाती हैं और उनकी पूजा-अर्चना करती हैं। शिव को 'गण' और पार्वती को 'गौर' कहा जाता है
धर्म ग्रंथो के अनुसार इस दिन माता पार्वती 16 श्रृंगार करके सौभाग्यवती स्त्रियों की सौभाग्य का आशीर्वाद देने के लिए निकली थी इसलिए इस दिन सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए भगवान से शिव व माता पार्वती की पूजा करती हैं यह पर्व राजस्थान में लोगों के लिए बहुत खास व महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह पर्व पूर्ण रूप से वैवाहिक जीवन में प्रेम का प्रतीक है यह पर्व नई फसल की कटाई के साथ-साथ बसंत आगमन का भी पर्व होता है गणगौर का पर्व होली आगमन से शुरू होकर चैत्र नवरात्रि तक चलता है इस दिन स्त्रियां मिट्टी से भगवान शिव बाबा माता पार्वती को बनाती हैं जिसे गौर कहा जाता है उसके बाद उनकी पूजा अर्चना की जाती है इस दिन की गई पूजा का खास महत्व होता है इस व्रत से मानोवांछित फल की प्राप्ति होती है
गणगौर की पूजा पति की लंबी आयु के लिए की जाती है इसमें सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और कुंवारी कन्या शिवजी जैसा पति पाने के लिए इस व्रत को करती हैं इस व्रत में भगवान शिव जी और माता पार्वती की पूजा की जाती है और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी इस व्रत को किया जाता है इसके साथ ही इस पर्व को मनाने के पीछे एक मुख्य वजह यह भी है कि शास्त्रों की मांने तो जब भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया था तब कामदेव की पत्नी रति अपने पति को पुनर्जीवित करने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की रति की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया इसके पश्चात रति ने माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की तब माता पार्वती व भगवान शिव ने कामदेव और रति को आशीर्वाद दिया कि कोई भी सुहागन स्त्री अपने पति की लंबी आयु के लिए अगर गणगौर की पूजा करती है तो उससे उन्हें माता पार्वती व भगवान शिव का आशीर्वाद प्रदान होगा
चैत्र नवरात्रि सावन शिवरात्रि गंगा दशहराव्रत के लिए कृष्ण पक्ष की एकादशी को सुबह स्नान आदि करके साफ स्वच्छ कपड़े पहने बाद में लकड़ी की बनी टोकरी में ज्वार रखें
1: गणगौर व्रत में वृत्ति महिला को केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए
2: गणगौर व्रत में वृति महिला को सुहाग का सामान भेंट करना चाहिए
3: इसके बाद चंदन अक्षत धूप दीप आदि अर्पित करें
4: उसके बाद गौरी को भोग लगे
5: भोग के बाद गौरी व्रत कथा सुने
6: माता गौरी को चढ़ाए गए सिंदूर से सुहाग ले
7: इसके बाद बजे बजे के साथ गौरी शिव को नदी या तालाब में विसर्जित करें
गणगौर व्रत कथा के अनुसार एक बार शिव और माता पार्वती वन में गए चलते-चलते दोनों बहुत ही घने वन में पहुंच गए तब माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि हे प्रभु बहुत तेज प्यास लग रही है इस पर भगवान बोले देवी देखो इस तरफ पंछी उड़ रहे हैं उस स्थान पर पानी अवश्य मिलेगा तब दोनों वहां पहुंचे वहां पर एक नदी बह रही थी तब पार्वती जी ने पानी की अंजलि भरी तो उनके हाथ में दूब का गुच्छा आ गया जब उन्होंने दूसरी बार अंजलि भरी तो टेसू के फूल उनके हाथ में आ गए और तीसरी बार अंजलि भरी तो ढोकला नामक फल हाथ में आ गया इससे पार्वती जी के मन में कई तरह के विचार उठने लगे किंतु उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था उसके बाद भगवान शिव ने उन्हें बताया कि आज चैत्र शुक्ल तीज है विवाहित स्त्रियां आज के दिन अपने सुहाग के लिए गौरी उत्सव करती हैं गौरी जी को चढ़ाए गए धूप फूल और अन्य सामग्री नदी में बहकर आ रही हैं
इस पर पार्वती जी ने विनती की स्वामी दो दिन के लिए आप मेरे माता-पिता का नगर बनवा दें जिससे सारी स्त्रियां वहीं आकर गणगौर के व्रत को करें और मैं खुद ही उसके सुहाग की रक्षा का आशीर्वाद दूं तब भगवान शंकर ने ऐसा ही किया थोड़ी देर में ही बहुत सी स्त्रियों का एक दल या तो पार्वती जी को चिंता हुई और वह महादेव जी से कहने लगी कि हे प्रभु मैं तो पहले ही उन्हें वरदान दे चुकी हूं अब आप भी सभी को सौभाग्य का वरदान दें तब पार्वती जी के कहने पर भगवान शिव ने उन सभी स्त्रियों को सौभाग्यशाली रहने का वरदान दिया माता पार्वती व भगवान शिव ने जैसे उन की मनोकामनाओं की पूर्ति की वैसे ही भगवान शिव और माता पार्वती की इस कथा को पढ़ने और सुनाने वाली सभी स्त्रियों का सुहाग अखंड रखने और सब की मनोकामना पूरी करना
गणगौर राजस्थान का मुख्य पर्व है और वहां इस पर्व की काफी मानता है गणगौर का मतलब शिव और गौर का मतलब पार्वती से है दोनों को मिलाकर बनता है गणगौर माना जाता है प्राचीन समय में माता पार्वती ने भगवान शिव को बर के रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत तपस्या व्रत किया जिसके फल स्वरुप माता पार्वती की तपस्या व व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए तब भगवान शिव ने माता पार्वती से वरदान मांगने को कहा तो माता पार्वती ने वरदान के रूप में भगवान शिव को ही वर् के रूप में मांग लिया तभी से इन दोनों को मिलाकर बन गया गणगौर और तभी से गणगौर पूजा मनाई जाने लगी
गणगौर का मेला राजस्थान में लगता है यह पर्व वहां का मुख्य पर्व है इसी कारण वहां पर सबसे प्रसिद्ध मेला लगता है गणगौर की पूजा राजस्थान में बड़े ही हरसोला के साथ मनाया जाता है और इस पर्व का खास महत्व ज्यादातर राजस्थान में ही देखने को मिलता है यह पारु राजस्थान का मुख्य पर्व है और यह पर्व होली के बाद से ही आरंभ हो जाता है इसी कारण वहांका मेला सबसे अधिक प्रसिद्ध है
जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि यह पर्व होली के बाद से ही मनाया जाता है और यह पर्व लगातार 17 दिनों तक चलता है इस त्योहार में स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं और अपनेघर में सुख समृद्धि का वरदान भी भगवान शिव व माता पार्वती से मांगती हैं
ये गाने अक्सर गणगौर के त्यौहार के दौरान गाए जाते हैं, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। ये गाने अक्सर स्थानीय भाषाओं में होते हैं, लेकिन यहाँ एक उदाहरण दिया गया है जो हिंदी में हो सकता है: