होली भारत का एक प्रमुख और रंगीन त्यौहार है जिसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसे "रंगों का त्यौहार" और "प्रेम का त्यौहार" भी कहा जाता है। होली मुख्य रूप से हिंदू धर्म का त्यौहार है, लेकिन इसे सभी धर्मों के लोग मनाते हैं। होली के उत्सव में रंग-बिरंगे रंगों का विशेष महत्व होता है।
होली का महत्व और उसकी परंपराएँ:
पौराणिक कथा: होली के साथ कई पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की है। हिरण्यकश्यप एक राक्षस राजा था जिसने अपने बेटे प्रह्लाद की भगवान विष्णु के प्रति भक्ति के कारण उसे मारने का प्रयास किया। प्रह्लाद को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की मदद ली, जिसे आग में न जलने का वरदान था। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। इस घटना की याद में होली मनाई जाती है और इसे बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में देखा जाता है।
होलिका दहन: होली के एक दिन पहले होलिका दहन होता है, जिसमें लकड़ी और गोबर के उपलों की ढेर जलाई जाती है। इसे होलिका दहन या छोटी होली भी कहा जाता है। यह बुराई के नाश और अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
रंग वाली होली: होलिका दहन के अगले दिन लोग एक दूसरे को रंग, गुलाल, और पानी डालकर होली खेलते हैं। इस दिन सभी मतभेद भुलाकर लोग एक दूसरे को गले लगाते हैं और मिठाई बांटते हैं।
संगीत और नृत्य: होली के अवसर पर लोग ढोल, मंजीरे और अन्य वाद्य यंत्रों के साथ गाने गाते और नृत्य करते हैं।
तारीख | शुक्रवार, 14 मार्च 2025 |
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2025 में होलिका दहन 13 मार्च, गुरुवार को होगा। शुभ मुहूर्त में होलिका दहन रात 11:26 बजे (13 मार्च) से शुरू होकर 12:29 बजे (14 मार्च) तक रहेगा, यानी कुल 1 घंटा 4 मिनट का समय रहेगा। इसके अगले दिन, रंगों का त्योहार होली 14 मार्च, 2025 (शुक्रवार) को मनाया जाएगा। पूर्णिमा तिथि 13 मार्च, 2025 की सुबह 10:35 बजे से शुरू होगी।
होली, रंगों का त्योहार, भारत और विश्वभर में हिन्दू समुदायों में महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व रखने वाला उत्सव है।
आइए आज हम जानेंगे कि होली क्यों और किस तिथि को मनाते हैं होली, जिसे "रंगों का त्योहार" भी कहा जाता है, फागुन पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह वर्ष का अंतिम और जन सामान्य के लिए सबसे बड़ा त्यौहार है।
पौराणिक कथा के अनुसार, असुर राज हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान श्री हरि के भक्त थे। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को श्री हरि की भक्ति करने से मना किया। जब प्रह्लाद ने मना करने पर भी भक्ति जारी रखी, तो हिरण्यकश्यप ने उन्हें मारने का प्रयास किया। पहाड़ पर ले जाकर गहरी खाई में गिराकर मारने का प्रयास किया, पर वह असफल रहे।
फिर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने कहा, "भैया, मैं उसे एक पल में जलाकर मार सकती हूं। मुझे वरदान प्राप्त है कि जलती हुई आग में भी प्रवेश करूं तो भी नहीं जलूंगी। मैं प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती अग्नि में बैठ जाऊंगी और वह उस आग में जलकर मर जाएगा।"
होलिका यह बात भूल गई थी कि यह वरदान केवल उनके अकेले के लिए था, न कि किसी और को साथ लेकर प्रवेश करने के लिए। वह खुशी-खुशी प्रह्लाद को लेकर चिता पर बैठ गई। राक्षसों ने चिता में आग लगा दी। प्रह्लाद श्री हरि का नाम जपते रहे। आग लगते ही होलिका चिता में जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। तब से इस घटना को स्मरण करने के लिए होलिका दहन की प्रक्रिया प्रतिवर्ष मनाई जाती है।
होलिका दहन के दिन लोग खेतों से चना और गेहूं की बालियां लाकर उन्हें जलती होली में भूनते हैं। इस प्रथा का अर्थ है कि हम अपने देवी-देवताओं को आहुतियां प्रदान करते हैं। बालियों को अग्नि में समर्पित करने के बाद नगर में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इन सब प्रक्रिया के बाद गेहूं और जौ की कटाई खेतों में शुरू की जाती है। होली का यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, भाईचारे और आनंद का संदेश देता है।
होलिका दहन पूर्ण रूप से वैज्ञानिकता पर आधारित है शीत ऋतु समाप्त होती है और ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ होती है रितु बदलने के कारण हमारे शरीर पर अनेक प्रकार के संक्रमण बीमारियों का आगमन होता है जैसे हैजा खसरा चेचक इन सब संक्रामक रोगों को वायुमंडल में ही भस्म कर देने के लिए होलिका दहन किया जाता है.पूरे देश में रात्रि काल में एक ही दिन होली जलाने से वायुमंडल में कीटाणु जलकर भस्म हो जाते हैं
इसके अलावा जलती होली की प्रतिष्ठा करने से हमारे शरीर में कम से कम 40 फारेनहाइट गर्मी प्रवेश होती है ऐसा करने से रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु हम पर हावी होने का प्रयत्न करते हैं तो इनका प्रभाव हम पर नहीं होता और वह हमारे अंदर आ चुकी उष्णता से स्वयं नष्ट हो जाते हैं तो दोस्तों यह है वैज्ञानिक दृष्टि से होलिका दहन का महत्व है. इस त्यौहार को मनाने का अर्थ यह है कि हम भक्ति पर विजय प्राप्त कर चुके प्रहलाद से प्रेरित होकर इस त्यौहार को मनाते हैं असत्य पर सत्य की विजय के चलते हम इस त्योहार को मनाते हैं.
होली का त्योहार हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार है होली रंगों का त्योहार है होली का त्यौहार लगभग सभी जातियों के लोग मनाते हैं होली के पर्व से 1 माह पहले ही इस त्योहार की तैयारियां शुरू हो जाती हैं जैसे रंगों की दुकानें लगाना बच्चों की पिचकारीओ की दुकानें लगाना बच्चे बड़ों के परिधानों की दुकानें लगाना पकवान बनाना आदि वैसे तो होली का सही महत्व यही है जो हम पहले पेज पर साझा कर चुके हैं लेकिन इस त्यौहार को मनाने के तरीके अलग-अलग भी होते हैं कोई कैसे भी मनाता है तो कोई कैसे भी मनाता है हर जगह का अपना अलग रिवाज होता है पर इसका महत्व एक ही है इसको मनाने का कारण एक ही है.
Food - होली का पर्व नजदीक आते ही घर की महिलाएं कई तरह के पकवान बनाना शुरु कर देती हैं जैसे पापड़ चिप्स मूंग दाल पापड़ उड़द दाल पापड़ चावल पापड़ साबूदाना पापड़ आलू पापड़ चिप्स आदि और कई तरह की मिठाइयां.दही बड़े मट्ठे गुजा हिस्से बनाना शुरू कर देते हैं हर त्यौहार का अपना अलग ही महत्व है और होली हिंदुओं का सबसे बड़ा त्यौहार है
होली का महत्व हिन्दू धर्म में गहरा है। यह एकता, प्यार और खुशी की भावना को बढ़ावा देता है और लोगों को बाधाओं का सामना करने की साहस और साहस देता है। इस दिन लोग अपने दोस्तों और परिवार के साथ रंग खेलते हैं, खुशी मनाते हैं और मिलकर परंपरागत गीत गाते हैं
होली की परंपराएँ विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न होती हैं, लेकिन रंगों के खेल का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। लोग एक-दूसरे पर अद्वितीय रंग फेंकते हैं, जिससे उनके बीच एकता और भाईचारा बढ़ता है।
होली के बाद रंग से बचाव और सफाई करने के लिए तेल और गरम पानी का उपयोग करें। त्वचा को नरमी से साफ करने के लिए मलाइयाँ और उबटन का उपयोग करें।
होली के उत्सव में सुरक्षा का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। रंग के खेल में केमिकल यूज करने से बचें और प्राकृतिक रंगों का उपयोग करें। अपने आपको तापमान से बचाने के लिए सेनिटाइजर का उपयोग करें और बच्चों को विशेष ध्यान दें।
1 - अपने आपको सुरक्षित रखने के लिए प्राकृतिक रंगों का उपयोग करें।
2 - बच्चों को सुरक्षित रहने में मदद करें और उन्हें केमिकल रंगों से बचाएं।
3 - आंखों को बचाने के लिए आंखों के चारों ओर तेल का उपयोग करें।
4 - खुद की सुरक्षा के लिए मास्क और गलस का उपयोग करें।