एकादशी व्रत एक महत्वपूर्ण हिन्दू आध्यात्मिक रीति-रिवाज़ वा महत्वपूर्ण व्रत है, जिसमें व्रती एकादशी तिथि को उपवास रखते हैं। एकादशी, हिन्दू पंचांग के आधार पर गणना की जाती है और हर मास की दो बार एकादशी आती है - एक सुक्ल पक्ष और एक कृष्ण पक्ष में । व्रती इस दिन अन्न और पानी की त्याग करते हैं और आध्यात्मिक अभ्यास करते हैं। यह व्रत शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है और व्रती इसके माध्यम से आत्मा की सांयम और स्वयं की समर्पण की दिशा में कदम बढ़ाते हैं एकादशी व्रत को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्व दिया जाता है। इस दिन व्रती अपने मन को शुद्ध करके ईश्वर की आराधना करते हैं एकादशी में काई प्रकार के व्रत होते हैं जैसे निर्जला एकादशी और देवशयनी एकादशी
दोस्तों जब भगवान ने सृष्टि की रचना की तो सभी प्रकार के पाप उत्पन्न हुए जब सभी पाप उत्पन्न हुए तो उन्हीं पापा से एक पापपुरुष की रचना हुई जो सभी पाप उन्हीं के अंग थे यमराज भी उत्पन्न हुए जो व्यक्ति जीवन में पाप करता है उनको यातना देने के लिए उनको नर्क में भेजते हैं जब भगवान ने देखा कि सभी जीवात्मा का पापा की तरफ है झुकाव है और बार-बार पाप करने के कारण सभी जीवआत्माओं को बार-बार नरक भेजा जाता है तो भगवान को मनुष्य पर दया आई.तो भगवान ने किया एकादशी को उत्पन्न किया जब एकादशी को भगवान ने उनका नामकरण किया क्योंकि वह 11 दिन प्रकट हुई वैदिक गणना के अनुसार 2 पक्ष होते हैं एक कृष्ण पक्ष एक शुक्ल पक्ष 15 15 दिनों के दोनों को मिलाकर एक महीना होता है शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में जब चंद्रमा की कलाएं बढ़ती है तो वह पूर्णिमा की तरफ जाती हैं 15 दिन में तो उसमें एक एकादशी पड़ती है और जो पूर्णिमा से चंद्रमा घटता है
तो कृष्ण पक्ष की तरफ तो उसमें एकादशी पड़ती है तथा 11 दिन आता है तो किस तरह से भगवान ने एकादशी का नामकरण किया है जब सभी पापों को कम करने के लिए एकादशी व्रत किया जाता है तो पाप बेचारा दुखी हो गया बाप सोचने लगा भगवान ने मुझे भी तो उत्पन्न किया है किंतु अब एकादशी के प्रभाव से लोग पाप नहीं कर पा रहे तोफा पुरुष भगवान के पास गया और बोला भगवान आपने तो हमारी भी रचना की है किंतु एकादशी के प्रभाव से लोग पाप मुक्त होते जा रहे हैं और हम कुछ कर नहीं पा रहे जिससे हम लोगों पर एकादशी का प्रभाव पड़ रहा है जिस कारण हमारा रात होता जा रहा है तो भगवान बोले अगर आप पर एकादशी का प्रभाव इतना ही पड़ रहा है तो आप 11 दिन के अंदर प्रवेश कर जाया करो ऐसा करने से आपका बचाव हो जाएगा ऐसा करने से यदि कोई व्यक्ति एकादशी के दिन अन्न ग्रहण नहीं करता तो वह पाप मुक्त हो जाता है और यदि वह व्यक्ति अन्य ग्रहण कर लेता है तो वह पाप का भागीदार बन जाता है
दोस्तों एकादशी का व्रत हम पापों से मुक्ति पाने के लिए करते हैं जैसा कि हम पहले पृष्ठ में सांझा कर चुके हैं कि पापा से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान ने एकादशी उत्पन्न कि हम पापों से मुक्ति पाने के लिए इस व्रत को करते हैं क्योंकि एकादशी वाले दिन अन्न ग्रहण नहीं करें क्योंकि एकादशी वाले दिन सभी पाप अन्न अंदर चले जाते हैं इसलिए हम एकादशी का व्रत करते हैं कहने का सही अर्थ यह है कि हमने जो पाप अपने जीवन में किए हैं या आगे करने वाले हैं उन सभी पापों से मुक्ति पाने के लिए ही हम इस एकादशी व्रत को करते हैं जिससे हमारे कुछ आपका हो जाते हैं किंतु यदि हम हमारे खाते में आ जाते हैं जैसे चोरी डकैती गौ हत्या माता पिता की हत्या इसलिए दोस्तों हम एकादशी व्रत को करते हैं जिससे हमारे कुछ कम हो सके कुछ पापों से मुक्ति पा सकें अपने जीवन से पापों का खात्मा करने के लिए हम इस व्रत को करते हैं
दोस्तों आज हम आपको एकादशी व्रत के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे एक साल में चौबीस एकादशी पड़ती है जैसा कि हमने पहले प्रस्तुत से साझा किया था कि एक कृष्ण पक्ष होता है और एक शुक्ल पक्ष होता है यह एक5 दिन के होते हैं दोनों को मिलाकर एक महीना होता है जब चंद्रमा की कलाएं बढ़कर पूर्णिमा की तरफ जाती है तो एक एकादशी करती है और जब पूर्णिमा से चलने मांगता है तो एक5 दिन कृष्ण पक्ष की तरफ होता है तो एक एकादशी करती है इसी प्रकार यह एक माह में दो एकादशी पढ़ती हैं कुल मिलाकर एक साल में चौबीस एकादशी पढ़ते हैं सरल भाषा में समझा तो एक एकादशी कृष्ण पक्ष में दूसरी शुक्ल पक्ष में पढ़ती है
वैसे तो दोस्तों साल में चौबीस एकादशी पड़ती है किंतु एक एकादशी ऐसी होती है जो साल में एक ही होती है वह बड़ी एकादशी होती है वह एकादशी साल की सबसे बड़ी एकादशी होती है जिसका खास महत्व व विशेषताएं होती हैं एकादशी व्रत को जो भी व्यक्ति करता है या करती है उनके कई जन्मों के पाप मिट जाते हैं और वह व्यक्ति विष्णु लोग मैं स्थान प्राप्त करता है ऐसा माना जाता है यदि कोई व्यक्ति अगर कोई अन्य व्रत करता है या ना करें किंतु एकादशी का व्रत अगर कोई व्यक्ति करता है तो उस व्यक्ति को अपने पापा से मुक्ति मिलती है उनको पापा से मुक्ति का रास्ता इसी एकादशी व्रत को करने से मिल जाता है इस व्रत को करने से हम इस जन्म को भी नहीं अपने अगले जन्म को भी सफल बनाने का प्रयत्न कर सकते हैं इस व्रत से हमें कोई फल मिले या ना मिले किंतु हर व्यक्ति को यह एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिए और जो साल में सबसे बड़ी एकादशी आती है उस एकादशी को तो सभी को व्रत करना चाहिए जिसे हम अपने पापा से मुक्ति पा सके हमारे जीवन में बड़ा ही महत्व होता है इसके करने से हम भगवान के चरणों में स्थान ग्रहण कर सकते हैं
दोस्तों एकादशी वाले दिन हम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं एकादशी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है किंतु इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा ही की जाती है और सभी का अलग महत्व होता है कार्तिक का महीना भगवान विष्णु का माना जाता है इस महीने में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु को निम्न सुषमा से पूजा की जाती है ब्रह्मा जी ने स्वयं नारद जी से यह बात बताई है सामग्री से भगवान विष्णु की पूजा करने से जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति पा सकते हैं इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करके हम मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं
एकादशी का व्रत दोस्तों दो तरह का होता है इसमें एक नित्य दूसरा काम्य व्रत इन दोनों व्रतों का अलग अलग महत्व है दोस्तों जिस में नित्य प्रति ऐसा व्रत है जो कि बिना किसी स्वार्थ बिना किसी भावना बिना किसी कामना के शुरू किया जाता है नित्य को शुरू करने का कोई नियम नहीं होता इसको हम जब मर्जी शुरू कर सकते हैं किंतु काम्य व्रत को शुरू करने का नियम होता है काम्य व्रत एक ऐसा व्रत है जिसको करने में हमारा स्वार्थ छुपा होता है दोस्तों हमारे जीवन में कई प्रकार के कष्ट होते हैं जैसे किसी के संतान नहीं है कोई किसी बीमारी से परेशान है किसी के पास नहीं है किसी के घर में सुख समृद्धि नहीं है इसी तरह की कई प्रकार की परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए हम यह व्रत करते हैं इन सब परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए हम इस व्रत का रास्ता अपनाते हैं इसको हम दूर करना चाहते हैं इसलिए भगवान की शरण में जाते हैंहमारे जीवन की सारी परेशानियां सारी समस्या दूर हो जाएं ऐसी कामना के लिए हम इस काम्य में एकादशी व्रत को करते हैं
और हम यह भी चाहते हैं इस व्रत को करने से हमारे मन मुताबिक हमें फल मिले इस व्रत को शुरू करने के चार महा बताए गए हैं पहला मार्गशीष का महीना इस माह में उत्पन्ना एकादशी आती है और मोक्षदा एकादशी आती है इस महीने से दोस्तों आप यह व्रत प्रारंभ कर सकते हैं दूसरा महीना चैत का महीना है और बैसाख का यह माघ का महीना इन महीनों में यह व्रत शुरू कर सकते हैं एकादशी व्रत करने से हमें सारे कष्टों के निवारण मिल जाता है और सबसे खास बात दोस्तों हमें इस व्रत को शुरू करने से पहले दो बातों का खास ध्यान रखना चाहिए कि गुरु तारा और शुक्र तारा उदय होना चाहिए शुक्र हमारे जीवन में धन वैभव लेकर आता है और गुरु हमें हमारी जो भी आवश्यकता है उन्हें पूरा करने के लिए हमें किस तरह से काम करना चाहिए हमें क्या योजनाएं बनानी चाहिए इन सब को व्यक्त करता है इसलिए दोस्तों इन दो बातों पर ध्यान रखना अति आवश्यक है और दोस्तों मलमास मौत और भादो के महीने में इस व्रत को शुरू नहीं करना चाहिए इस व्रत के लिए यह तीन महीने शुभ नहीं माने जाते हैं इसलिए दोस्तों व्रत शुरू करने से पहले इन सभी बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है
एकादशी व्रत को शुरू करने से पहले कुछ बातों का कुछ नियमों का पालन करना अति आवश्यक है एकादशी व्रत के कुछ नियम होते हैं जैसे एकादशी से एक दिन पहले व्यक्ति का संचार अपने हृदय में भगवान के प्रति होना चाहिए और जब एक दिन पहले मतलब दशमी वाले दिन शाम को आप जब भोजन ग्रहण करें तो ध्यान रखें कि उस भोजन में कोई ऐसी दिव्य पदार्थ ग्रहण न करें
जिससे आपकी एकादशी ब्रदर जाए कोई बेकार भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए जैसे मास मदिरा बगैरा दूसरा नियम दोस्तों एकादशी वाले दिन ना रखना चाहिए कि गलती से भी आपके हाथों से किसी भी वृक्ष का पत्ता आप से ना टूटे किसी भी पेड़ से कोई भी आपके हाथों से ना टूटे या एकादशी व्रत वाले दिन रखी हुई रोटी से निकालकर गाय को नहीं देनी चाहिए
उनको कुछ पल जो भी आप खाते हो वह गाय को खिलाने चाहिए अगला नियम दोस्तों अपने हाथों से किसी भी जीव की हत्या नहीं करनी यदि हम ऐसा करते हैं तो पाप की जगह पुण्य के भागी बन जाते हैं और हमारा एकादशी व्रत निष्फल हो जाता है एकादशी के दिन किसी पुरुष के पास या व्यक्ति के पास ना बैठे किसी को किसी चोर डकैत के पास ना जाए.
दोस्तों यह लाभकारी है इस व्रत को पूरी श्रद्धा और नियमानुसार करेंगे तो आपको अत्यंत सुख का लाभ और पापों से मुक्ति का रास्ता मिलेगा इसलिए इन बातों को शुरू करने से पहले इन नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है
वैसे तो दोस्तों इस व्रत को सभी कर सकते हैं किंतु कुछ लोगों का मानना है कि कुंवारी कन्या या विधवा औरतें इस व्रत को नहीं कर सकती किंतु दोस्तों क्या आप जानते हैं कि व्रत मतलब उपवास इसका अर्थ है उसको मतलब लुकअप बात मतलब भगवान के भगवान के पास रहना सिंपल शब्दों में कहा जाए तो इसका सही अर्थ है भगवान के चरणों में बात करना है
उनकी शरण में रहना किंतु दोस्तों हम यह नहीं समझ पा रहे कि किसको प्रभु के चरणों में वाश करना चाहिए और किसको नहीं करना चाहिए दोस्तों क्या कुंवारी कन्या भगवान की पूजा व्रत करने का अधिकार नहीं है और बुधवार को भगवान के चरणों में बात करने का और पूजा व्रत करने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह हमारे समाज की बड़ी ही विचित्र विडंबना है कि आज के समय में भी ऐसी ही नेता को लोग बढ़ावा और दुकानों की सोच को लेकर चल रहे हैं बढ़ावा दे रहे हैं
जहां एक तरफ समाज इतना बदल गया है हर व्यक्ति आज पढ़ा लिखा है हर कोई इतना आगे बढ़ चुका है वहां आज भी कुछ ऐसे पूर्व आदि लोग हैं जो ऐसी सोच रखते हैं पूजा करने का व्रत करने का हर व्यक्ति को अधिकार है चाहे वह पुरुष हो या स्त्री लड़की हो या विधवा औरत भगवान के चरणों में हर व्यक्ति स्थान मिलना चाहिए और व्रत करने का सबको अधिकार और सब यह व्रत कर सकते हैं ऐसी समस्या आ जाती है कि हम व्रत नहीं कर सकते सिर्फ मजबूरी में ऐसी स्थिति होती है
इस व्रत को नहीं कर सकते अन्यथा हर कोई इस ग्रुप को कर सकता है किसी को भी इसको करने की मनाही नहीं है एकादशी का व्रत भगवान को प्रसन्न करने के लिए करते हैं और अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए इसलिए इस व्रत को सभी कर सकते हैं
दोस्तों वैसे तो इस व्रत को सभी लोग कर सकते हैं इस वक्त करने की किसी की मनाही नहीं है क्योंकि तीन लोग कैसे हैं जो इस बात को नहीं कर सकते
धर्म शास्त्र के अनुसार तलाकशुदा औरतों को यह व्रत नहीं करना चाहिए ऐसा करने से श्री हरि विष्णु का अपमान माना जाता है जो तलाकशुदा यह व्रत करती हैं तो भगवान विष्णुनाराज हो जाते हैंऐसा माना जाता है कि जब पति पत्नी मिलकर इस व्रत को करते हैं तो कई शक्तियां एक साथ जुड़ जाती हैं और बन जाता हैमहा संजोग ऐसे में पुराणों में बताया गया है जब दोनों पति-पत्नी किसी कारण बस अलग हो गए हैं और उन दोनों में तलाक हो गया है तो ऐसी स्त्रियों को यह एकादशी व्रत में कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि यह व्रत भक्ति भाव और प्रेम को दर्शाता है ऐसे में यदि आप अपने पति से अलग होकर व्रत करते हैं तो इसे पाप माना जाता है इससे माता लक्ष्मी का अपमान होता है श्रीहरि क्रोधित हो जाते हैं आपका व्रत भंग हो जाता है इसलिए तलाकशुदा महिला को एकादशी का व्रत कभी नहीं करना चाहिए यदि आप अपने पति के साथ प्रेम से रह रहे हैं तभी आप इस व्रत को कर सकते हैं
मासिक धर्म दोस्तों ऐसा माना जाता है कि मासिक धर्म वाले दिनों में यह व्रत नहीं करना चाहिए क्योंकि मासिक धर्म में धार्मिक कार्यों को करना उचित नहीं होता इन दिनों में धार्मिक कार्यों से दूर रहना चाहिए इन दिनों में महिलाओं को मंदिर जाने की भी इजाजत नहीं होती है इसके साथ ही दोस्तों पूजा-पाठ के सामान और मूर्तियों को भी नहीं सुनना चाहिए ऐसी स्थिति में महिलाओं को धार्मिक कार्यों से दूर रहना चाहिए इन दिनों में महिलाओं को किसी भी तरह के धार्मिक कार्य को नहीं करना चाहिए क्योंकि इन दिनों में किसी भी धार्मिक कार्य को करने से दोष माना जाता है और पूजा भी असफल मानी जाती है इसलिए यह एकादशी व्रत भी नहीं करना चाहिए यदि आपने एकादशी का व्रत रख लिया है और अचानक आपका मासिक धर्म शुरू हो गया तो आप दूर से ही हाथ धो सकते हैं या अपनी जगह अपने बच्चों से या अपने पति से पूजा करा सकते हैं व्रत को तोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है और दोस्तों ऐसा भी नहीं है कि आपने अगर किसी और से यह व्यक्ति कराया है तो आपको उसका फल नहीं मिलेगा आपको पूजा का इतना ही फल मिलेगा कितना के आपके द्वारा की गई पूजा से मिलता क्योंकि दोस्तों यह तो प्राकृतिक का चक्र है प्रकृति का नियम है इसमें इंसान नहीं होता का कोई हक नहीं होता नहीं यह गलत है किसी भी का आस्था इंसान के मन विचारों से जुड़ा हुआ है हमारा शरीर तो महज एक जरिया है इसलिए दोस्तों मासिक धर्म में इस व्रत को करने की मनाही होती है
दोस्तों कोर्ट मैरिज करने वाली वैसे तो दोस्तों के सदस्यों के लिए बहुत खास माना जाता है ऐसा करने से वैवाहिक जीवन संतान प्राप्ति धन दौलत मोक्ष की प्राप्ति सब मिल जाता है किंतु एकादशी व्रत को करने से लेकिन दोस्तों हिंदू रीति रिवाज के अनुसार यदि आपने सात फेरे नहीं लिए तो आप भूल कर भी पवित्र एकादशी का व्रत ना रखें इसकी कथा सुनना भी आप के समान माना जाता है इस स्थिति में आप एकादशी व्रत को कभी ना करें कोई भी महिला पुरुष बिना तेरे लिए इस एकादशी व्रत को न करें शास्त्रों में इस बात की मनाही है इसीलिए यदि आपने कोर्ट मैरिज की है और आपके साथ फेरे नहीं हुए हैं तो आप भूल कर भी इस पवित्र शास्त्रों के विरुद्ध जाकर जो यह एकादशी का व्रत करता है वह हो आप वन अर्थ करता है इसलिए दोस्तों कोर्ट मैरिज वाली स्त्री भूलकर भी इस एकादशी व्रत को ना करें
दोस्तों एकादशी वाले दिन बाल धोने चाहिए या अरे मैं बात करने जा रहे हैं वैसे तो दोस्तों इस में हर चीज के नियम होते हैं जैसे व्रत खोलने के नियम रखने के लिए शुरू करने के लिए पूजा करने के लिए इसी प्रकार दो इसमें भी नियम है जिसकी पूरी जानकारी आज हम आपको इस लेख के माध्यम से देंगे दोस्तों कुछ तिथियां ऐसी होती हैं जिन्हें सुहागन स्त्रियों को बाल दुगना वर्जित माना जाता है जैसे अमावस्या पूर्णिमा एकादशी गुरुवार सोमवार इन दिनों में महिलाओं को बाल नहीं धोना चाहिए यदि इन शब्दों में आपका बहुत है तो व्रत से एक दिन पहले ही सिर्फ दो सकते हैं यदि बहुत ज्यादा जरूरी है
कि कुछ सिर पर एक लोटा ही पानी डाल सकते हैं अपनी सभ्यता के लिए इसमें ज्यादा आप कुछ नहीं कर सकते शैंपू बालों में एकादशी वाले दिन नहीं करना चाहिए लेकिन इसमें कुछ खास तिथियां और जैसा कि माना जाता है कि यदि हम अमावस्या के दिन बाल धोते हैं तो पति की उम्र कम होती है और पूर्णिमा के दिन बाल धोते हैं तो बच्चों की उम्र कम होती ऐसे ही दोस्तों एकादशी के दिन बाल धोना उचित नहीं माना जाता है इसीलिए आप एकादशी के दिन बाल नहीं धोने चाहिए एकादशी से एक दिन पहले ही आप बाल धो सकते हैं सकते हैं
एकादशी व्रत को खोलने के कुछ नियम होते हैं उन्हें नियमों के अनुसार ही एकादशी का व्रत खोलना चाहिए दोस्तों इस व्रत को हम एकादशी वाले दिन ना खोल कर उसके अगले दिन यानी दशमी को होना चाहिए हर महीने एकएक दिन एकादशी आती है इस दिया गया सूर्योदय से आरंभ होकर द्वादशी के तक चलता हैइस व्रत को करने के कुछ नियम होते हैं जैसा कि हम उसके पेट में साधा कर चुके हैं इस व्रत को करने का पूर्ण फल कभी मिलता है दोस्तों इस व्रत को जब आप खोलें तो आपको ध्यान रखना चाहिए कि आप अपने भोजन में क्या खा रहे हैं आप अपने भोजन में कुछ ऐसा नहीं खाएं जिससे आपका व्रत में हो जाए कहने का सही अर्थ यह है कि आपको अपने भोजन में तामसिक जैसे लहसुन प्याज मांस मदिरा और गाजर गोभी शलगम और चावल का सेवन भी नहीं करना चाहिए
यह दोस्तों केवल हुक्का नहीं अपने इंद्रियों पर काबू रखने का व्रत भी माना जाता है और मन साफ रखना चाहिए मन में श्री हरि का ही जाप करना चाहिए ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और सबसे खास दोस्तों आप अपना व्रत खोलते समय यह बात ध्यान मैं अवश्य रखें कि आप जो भी भोजन कर रहे हैं उसमें तुलसीदल का प्रयोग अवश्य होना चाहिए उसके पश्चात अपनी सामर्थ्य के अनुसार द्वादशी को ही दान दक्षिणा देनी चाहिए और व्रत खोलने से पूर्व चरणामृत अवश्य लें और किस तरह से आप द्वादशी वाले दिन अपना व्रत खोल सकते हैं
पौराणिक कथा के अनुसर माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया था और उनका अंश पृथ्वी में समा गया चावल और जो के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए इसलिए चावल और जो को जीव माना जाता है जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया उस दिन एकादशी तिथि थी इसीलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया है ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना मेधा के मास और रक्त के सेवन करने जैसा है वैज्ञानिक तत्व के अनुसर चावल में जल तत्त्वों की मात्रा अधिक होती है जल पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है और चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ जाती है एकादशी व्रत में मन का निग्रह और सात्विक भाव का पालन करना अति अवसर होता है
पुराने के अनुसार साल में 24 एकादशी पड़ती है और वह सभी एकादशी भी महत्वपूर्ण होती है किंतु उनमें से एक एकादशी निर्जला एकादशी होती है जो की पूरे साल में एक बार पढ़ती है और इस निर्जला एकादशी व्रत को बिना जल ग्रहण किया जाता है इस व्रत में कोई भी व्यक्ति जो यह व्रत कर रहा है पूरे दिन जल को ग्रहण नहीं करेगा इसलिए इस व्रत को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है
वैसे तो हम केवल बारे में अपने आप को पवित्र यानी शुद्ध करना आवश्यक है तो सबसे पहले आसन पर बैठे और अपने ऊपर कुछ पुष्प की मदद से तीन बार गंगाजल डालकर अपना शुद्धिकरण करें उसके बाद आचमन करने के जल हाथ में लेकर ओम श्री केशबाय नमः माधवबायो नमः ॐ नारायणाय नमः मंत्र का जाप कहकर अपने हाथ धो लीजिए इसके बाद एक लकड़ी के पार्टी पर पीला कपड़ा बिछा लो तत्पश्चात भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन प्रदान करो यदि आपके पास भगवान विष्णु की प्रतिमा है
तो बहुत अच्छा होगा क्योंकि मूर्ति स्वरूप विभिन्न प्रकार के अभिषेक कराने में आसानी होती है और आनंद भी बहुत आता है यदि विष्णु जी की मूर्ति ना हो तो आप लड्डू गोपाल की भी रख सकते हैं फिर हमें एक मुट्ठी गेहूं चौकी पर रखकर उस पर तारे का सदस्य रखना चाहिए फिर उस पर एक तांबे का कलश रखेंगे उस कलश जल से भरेंगे और इसमें सफेद तिल पूर्ण सुपारी दक्षिणा डालेंगे और आम के पत्ते लगाकर एक कटोरी में आफत के रूप में गेहूं पर रखेंगे और एक दीपक रखेंगे फिर गौरी गणेश की स्थापना के लिए एक कटोरी में गेहूं रखकर मौली में मौली धागा बांधकर गणेश जी की और मिट्टी से गौरी की स्थापना करेंगे
गौरी और गणेश जी की स्थापना के बाद अब आप पूजा शुरू कर सकते हैं तत्पश्चात दीपक जलाकर भगवान को आवाहन करेंगे क्योंकि पूजा शुरू करने से पहले भगवान का आवरण करना बहुत जरूरी होता है क्योंकि जब तक हम भगवान को बुलाएंगे नहीं तब तक हम पूजा कैसे कर पाएंगे तो सर्वप्रथम भगवान को बुलाना अति आवश्यक है भगवान को बुलाने के लिए आवाहन करने के लिए हाथ में अक्षत और फूल लेकर भगवान का आवाहन करना चाहिए और बोलना है यह बोल गणेश एकादशी व्रत की पूजा हेतु में आपका आवाहन करती हूं
कृपया करके यहां विराजमान हो और हमारी पूजा को स्वीकार करें ओम श्री गणेशाय अंबिका बे नमस्कार बोलते हुए अक्षत फूल गौरी गणेश के चरणों में समर्पित कर रहे हैं इसी प्रकार कलश में भी आवाहन करना है इसके सभी देवी देवताओं से आप का आवाहन करती हूं कृपया करके कलश में विराजमान हो और हमारी पूजा विधि स्वीकार करें इसी प्रकार से होते हुए अक्षय स्कूल कॉलेज के पास छोड़ें इसके बाद हम भगवान विष्णु का आवाहन करेंगे हम एकादशी व्रत के लिए आपका आवाहन करते हैं कृपया करके इस प्रतिमा में विराजमान हो और हमारी पूजा स्वीकार करें
इस तरह से अक्षत फूल भगवान विष्णु के चरणों में समर्पित करें और ओम विष्णु देवाय नमः इस प्रकार ध्यान करके सबसे पहले गौरी कलश और भगवान विष्णु का पूजन करेंगे की बात सभी देवी देवताओं पर जल से अभिषेक करें उसके बाद दूध से तत्पश्चात हल्दी चंदन से तिलक करें पुष्प अर्पण करें फिर धूप दीप जलाएं सोना का कुछ सामान रखें उसके बाद भगवान श्री विष्णु का पूजन शुरू करें सबसे पहले नवेद अर्पित करें वैसे तो अलग-अलग एकादशी पर अलग-अलग बताए गए हैं कहने का तात्पर्य है कि मौसम के अनुसार भगवान पर वितरित किए जाते हैं
कार्तिक में मेथी आलू की एकादशी में आम नेताओं के साथ ही निर्जला एकादशी में इसी प्रकार दोस्तों मौसम के अनुसार ही भगवान नवेद अर्पण किया जाता है इससे पहले भोग पर तीन बार गंगाजल डालें इन सब प्रक्रिया के बाद एकादशी पूजा विधि शुरू कर सकते हैं
आज हम अपरा एकादशी व्रत कथा को अपने इस पेज के माध्यम से सुनाएंगे दोस्तों एक समय की बात है हिंदुस्तान महाराज भगवान श्री कृष्ण से पूछने लगे कि भगवान जेष्ठ मास की कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का क्या नाम है कृपया करके मुझे इसके बारे में विस्तार से बताएं और इसका क्या महत्व है भगवान श्री कृष्ण बोले आपने जनकल्याण के लिए बहुत ही उत्तम प्रश्न पूछा है जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का नाम अपरा एकादशी है यह एकादशी प्रेत आत्माओं मैं गई जीव आत्मा को मुक्ति दिलाने प्रदान करने के लिए हम इस अपरा एकादशी के व्रत को करते हैं
इसलिए इस एकादशी के दिन पूर्वजों का ध्यान करते हुए इस व्रत का पालन करना चाहिए पुरातन समय में महध्वज नामक एक राजा राज्य करता था वह बहुत ही धर्मात्मा उसके राज्य में प्रजा सुख पूर्वक निवास करती थी उन का छोटा भाई ब्रिज ध्वज अत्यंत क्रूर और अन्याय था राजा मोरध्वज की लोकप्रियता से वह बहुत चढ़ता था जिसके कारण उसने एक ऐसा कार्य किया जिसके बारे में कल्पना करना भी असंभव है एक दिन वह रात्रि के समय अपने भाई के कक्ष में गया और उसने अपने भाई की हत्या कर दी और उसने उसके सबको नगर के भी बाहर एक पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया
इसी प्रकार राजा महेंद्र की अकाल मृत्यु होने के कारण राजा महेश ध्वज को प्रेतयोनि प्राप्त हुई और उसी पेड़ पर रहते हुए आने जाने वालों को परेशान करने लगा इधर उधर भटकने लगा एक समय ईश्वर की इच्छा से महाऋषि धम्मिया उसी पीपल के पेड़ के पास से गुजर रहे थे तब उन्हें उस प्रेत आत्मा के होने का आभास हुआ अपनी तपोबल से उन्होंने उस प्रेत को देखा और यह भी जान लिया कि उसकी यह दुर्दशा कैसे हुई है उदार मन वाले ऋषि ने प्रेत योनि में रहने वाले राजा को पेड़ से नीचे उतारा और उन्हें अल्लो की विद्या का ज्ञान दिया करुणा से वशीभूत होकर ऋषि ने राजा को प्रेत योनि से मुक्ति प्रदान करने हेतु अपरा एकादशी का अनुष्ठान किया
और उन्होंने एकादशी का पुण्य फल राजा को अर्पित किया इस पुण्य फल के प्राप्त होते ही राजा मोरध्वज की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई और उन्होंने ऋषि को धन्यवाद देते हुए वह अभिमान में विराजमान होकर बैकुंठपुर चले गए दोस्तों यह कथा है अपरा एकादशी की अंत में भगवान श्री कृष्ण यह धरती से बोले हे युधिष्ठिर जो कोई व्यक्ति एकादशी का श्रद्धा पूर्वक और पूरी निष्ठा पूर्वक पालन करता है वह व्यक्ति सही में पुण्य अर्जित करता हूं यह एकादशी मां बाप की हत्या भ्रूण हत्या धन संचय के लिए शास्त्रों का अध्ययन गुरु की निंदा आदेश पापों से मुक्ति प्रदान करता है शास्त्रों में मनुष्य जीवन करने योग्य कुछ पुण्य कर्म बताए गए हैं
जैसे कार्तिक मास में पुष्कर में स्नान करना काशी में महाशिवरात्रि का पालन करना गया में पिंडदान करना स्वर्ण दान देना दान देना आज वर्तमान समय में जो व्यक्ति इन सभी पुण्य कर्मों को कर सकते हैं तो वह व्यक्ति अपरा एकादशी व्रत श्रद्धा भाव से करके भगवान श्री कृष्ण के चरणों में स्थान पा सकते हैं