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Santan Saptami 2025 | संतान सप्तमी व्रत रखने से संतान सुख की प्राप्ति, जानें पूजा विधि और कथा

Table of index

  • संतान सप्तमी व्रत क्या है
  • संतान सप्तमी 2025 में कब है
  • संतान सप्तमी का महत्व
  • संतान सप्तमी का धार्मिक महत्व
  • संतान सप्तमी की कथा
  • संतान सप्तमी पूजा विधि

संतान सप्तमी व्रत क्या है | What is Santan Saptami fast?

संतान सप्तमी व्रत का आयोजन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है,भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में, परिवार का महत्व अत्यंत उच्च माना जाता है और संतान सुख को प्राप्त करना समृद्धि और परिपूर्णता का प्रतीक माना जाता है। संतान सप्तमी, एक विशेष धार्मिक अवसर है, जो संतान सुख की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

संतान सप्तमी 2025 में कब है | Santan Saptami 2025 Date and Time

Date | तारीख 30 अगस्त 2025
Day | दिन Saturday | शनिवार

संतान सप्तमी व्रत का महत्व | Importance of fasting on Santan Saptami

संतान सप्तमी वर्ष के शुक्ल पक्ष के सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन श्रीकृष्ण भगवान की पूजा की जाती है, जिनकी कहानी भगवद पुराण में मिलती है। इस दिन विशेष रूप से गोपियाँ और उनके पतियों ने संतान सुख की कामना करते हुए इस पूजा को शुरू किया था। इस दिन को संतान सुख की प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है, और विशेष रूप से बालकों की सुरक्षा एवं उनके उत्तम स्वास्थ्य के लिए इस दिन का व्रत रखा जाता है।

संतान सप्तमी का धार्मिक महत्व | Religious importance of Santan Saptami

संतान सप्तमी व्रत का पालन करने से मान्यता है कि व्यक्ति को संतान सुख की प्राप्ति होती है और उसके परिवार को आनंद और समृद्धि मिलती है। यह एक परम्परागत व्रत है जो परिवार को सुख-शांति के साथ सजीवन साथी प्रदान करता है।

बहुत समय पहले, एक गाँव था जहां एक साधु आश्रम में विशेष ध्यान और तपस्या कर रहे थे। उनमें से एक साधु ने अपने आश्रम के निवासियों को संतान सुख की प्राप्ति के लिए एक विशेष व्रत का सिद्धांत बताया। इस व्रत का नाम रखा गया "संतान सप्तमी"।

संतान सप्तमी की कथा | Santan Saptami Ki katha

कई सालों पहले, एक ब्राह्मण आश्रम में अपनी पत्नी के साथ व्रत का पालन कर रहा था। उनका एकमात्र इच्छा था कि भगवान उन्हें संतान सुख प्रदान करें। उन्होंने साधुओं से अनेक उपाय सुने, परंतु वह तपस्या और ईमानदारी के साथ जीवन यापन करता रहा।

एक दिन, आश्रम में एक पुराने साधु आए। वे ब्राह्मण के पास गए और उनसे उनकी समस्या का कारण पूछा। ब्राह्मण ने अपनी इच्छा बताई और उनसे सहायता मांगी। पुराने साधु ने ब्राह्मण को एक विशेष व्रत का वर्णन किया जिसे "संतान सप्तमी" कहा जाता है। इस व्रत का पालन करने से उन्हें संतान सुख मिल सकता था।

कथा

कहानी यही है कि एक समय भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों के साथ खेतों में खेती करते समय गोपियों के साथ खेला खेला करते थे। एक दिन, गोपियाँ भगवान श्रीकृष्ण की आदर्श पति बनने के लिए व्रत करने का संकल्प करती हैं। उन्होंने एक सप्तमी का व्रत रखा जिसे "संतान सप्तमी" कहा गया।

गोपियाँ ने सप्तमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की पूजा की और उनके सामने अन्न, फल, और मिठाई रखी। वे अपने मन से प्रार्थना करती हैं कि भगवान उन्हें अच्छा पति दें और उन्हें संतान सुख प्रदान करें। भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी प्रार्थना सुनी और उन्हें आशीर्वाद दिया कि उन्हें सुखी परिवार मिलेगा। गोपियाँ ने अपने व्रत का पालन करके देखा कि उन्हें संतान सुख मिलता है और उनका परिवार भी सुख-शांति से भरा हुआ है। इसके बाद से ही "संतान सप्तमी" को भगवान श्रीकृष्ण की आराधना का एक विशेष रूप माना जाता है

संतान सप्तमी की पूजा विधि | Santan Saptami vrat puja vidhi

(1) संतान सप्तमी के दिन उपासक उठकर स्नान करते हैं और विशेष रूप से संतान सुख के लिए निर्धारित व्रत आरंभ करते हैं।

(2) गोपी वस्त्र और गोपाल मुख से भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को सजाकर पूजा किया जाता है। व्रती व्यक्ति विशेष रूप से श्रीकृष्ण भगवान की कथाओं का समर्थन करते हैं और उन्हें बालक रूप में पूजते हैं।

(3) व्रती भगवान श्रीकृष्ण की आरती गाते हैं और उन्हें नैवेद्य अर्पित करते हैं।

(4) इइस दिन व्रती व्यक्ति विभिन्न प्रकार के फल, मिठाई और अन्य आहार सामग्री को भगवान को अर्पित करते हैं और फिर इसे समर्पित करते हैं।