dasha mata vrat katha in hindi

Dasha Mata Vrat 2024 | दशा माता की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में राजा नल और दमयंती राज्य करते थे उनके दो पुत्र थे उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी रहती थी एक दिन की बात है उस दिन होली दशा थी एक ब्राह्मणी राज्य महल में आई और रानी से डोरा बांधने को कहा तब रानी की दासी बीच में बोल पड़ी और बोली हां रानी साहिबा आज के दिन सभी सुहागिन महिलाएं दशा माता का पूजन और व्रत करती हैं और इस धागे को गले में पहनती है जिससे घर में सुख समृद्धि बनी रहती है ऐसा सुनकर रानी ने ब्राह्मणी से उस डोरे को लिया और विधि अनुसार अपने गले में डाल लिया कुछ समय पश्चात जब राजा ने अपनी रानी दमयंती के गले में वह धागा को दिखा तो राजा ने कहा इतने सोने और चांदी और हीरे जवाहरात के गहने होने के बाद भी आप अपने गले में यह डोर क्यों पहने हैं इससे पहले रानी कुछ कहती तब तक राजा नल ने उस धागे को रानी के गले से निकालकर जमीन पर फेंक दिया तब रानी ने उस धागे को जमीन से उठाकर राजा से कहा यह डोरा तो दशा माता का डोर है अपने यह डोरा फेक कर अच्छा नहीं किया जब रात्रि के समय राजा सो रहे थे

तब दशा माता बुढ़िया का रूप धारण करके स्वप्न में आए और राजा से कहा है राजा तेरी अच्छी दिशा जा रही है और बुरी दशा आ रही है तूने मेरा अपमान करके अच्छा नहीं किया इतना कहते ही दशा माता अंतरध्यान हो गई जैसे जैसे समय बिता वैसे-वैसे कुछ ही दिनों में राजा के ठाठ बात हाथी घोड़े लाभ लश्कर धन-धान्य सुख शांति सब कुछ नष्ट होने लगी अब तो उनके भूखे मरने के दिन आ गए तब राजा ने अपनी पत्नी दमयंती से कहा कि तुम अपने दोनों पुत्रों को लेकर अपने माता-पिता के यहां चली जाओ तब उनकी पत्नी ने कहा कि मैं आपको ऐसे हालात में छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी जिस प्रकार आप रहेंगे इस स्थिति में मैं भी रह लूंगी आपके साथ तब राजा नल ने कहा चलो हम दोनों कहीं दूसरे देश में चले जाएंगे यहां यदि हम कोई कार्य करेंगे तो हमें कोई काम नहीं देगा और यहां हमें सब जानते हैं दूसरे देश में हमें जो भी काम मिलेगा हम उसे कर लेंगे इस तरह नल राजा अपने परिवार सहित अपने देश को छोड़कर चल दिए

चलते-चलते रास्ते में भील राजा का महल दिखाई दिया वहां राजा ने अपने दोनों बच्चों को अमानत के तौर पर छोड़ दिया आगे चल ले तो राजा के मित्र का गांव आ गया तब राजा ने रानी से कहा तुम मेरे मित्र के यहां चलो जब मित्र के यहां राजा पहुंचे तो उनका खूब आदर सत्कार हुआ और पकवान अच्छे-अच्छे बनाकर खिलाएं और रात्रि में मित्र ने उनको अपने सयनकक्ष में सुलाया उसी कक्ष में नल राजा के मित्र की पत्नी का हीरो से जरा हर खूंटी पर टंगा था तब राजा नल ने देखा कि वह बेजान खुटी उस हार को निकल रही है यह देखकर राजा ने रानी से कहा है रानी देखो आज हमारे बुरे दिन है तो हमें आज यह दिन भी देखना पड़ रहा है चलो रात्र में ही यहां से निकल लेते हैं क्योंकि राजा सुबह पूछेंगे तो क्या जवाब देंगे ऐसा सोचकर वह वहां से रात्रि में ही चल दिए जब सुबह हुई तो मित्र की पत्नी ने खूंटी पर टंगे हार को देखा तो वह वहां नहीं था तब रानी ने कहा तुम्हारे मित्र कैसे थे मेरा हीरो का हार ही चुरा कर ले गए तब नल राजा के मित्र ने अपनी पत्नी को समझाया कि मेरा मित्र ऐसा नहीं है कृपया उसको चोर ना कहो

आगे चलकर राजा नल की बहन का गांव था बहन के घर खबर पहुंचाई गई कि आपके भाई भाभी आ रहे हैं तो बहन ने पूछा कि वह कैसे आ रहे हैं किस पर आ रहे हैं उनके हाल-चाल कैसे हैं तब रानी का सैनिक बोला वह काफी दुखी हाल में है और पैदल आ रहे हैं इतनी बात सुनकर बहन ने कहा कि उनको कहना कि कुम्हरण के यहां रुके तब बहन ने थाली में रखकर भोजन भेजा और उनसे मिलने आई लेकिन ऐसा व्यवहार देखकर राजा ने वह भोजन नहीं किया और वह भोजन को वही गढ़ दिया और वह वहां से चल दिए चलते-चलते राजा नल नदी के पास पहुंचे और भूख प्यास से व्याकुल रानी से कहा मैं यहां से मछलियां निकाल कर देता हूं तुम इन्हें निकाल कर पका लो मैं गांव से पसार लेकर आता हूं तो नल राजा ने देखा कि गांव के सेठ गांव के सभी नगर वासियों को भोजन कर रहे हैं तो नल राजा भी वहां से परोसा लेकर चल दिए जैसे ही नल राजा वहां से परोसा लेकर चले वैसे ही एक चिल में झपट्टा मार दिया तो सारा भोजन नीचे गिर गया तो राजा ने सोचा रानी सोचेंगे कि खुद तो भोजन करके आ गए मेरे लिए कुछ नहीं लेकर आए उधर रानी मछलियों को पका रही थी वह सारी मछलियां जीवित होकर तालाब में चली गई तब रानी तब रानी ने सोचा कि राजा सोचेंगे कि इन्होंने सारी मछलियां पका कर अकेले ही खा गई जब राजा आए और वह दोनों ही एक दूसरे के मन को समझ गए और वहां से चल दिए

चलते-चलते रानी का गांव आया तब राजा बोला तुम अपने घर चली जाओ और वहां जाकर दासी का कार्य कर लेना और मैं इसी गांव में नौकरी कर लूंगा इस प्रकार रानी महल में दासी का काम करने लगी और राजा सैनी के दाने में काम करने लगा दोनों को काम करते-करते बहुत समय बीत गया जब होली का दिन आया तब सभी सुहागन ने सर धोकर स्नान किया तब दासी बनी रानी का उसकी मां ने यानी राजमाता ने कहा तेरा भी सर गुथ देटी हूं ऐसा कहकर राजमाता दासी का सर गुथने लगी तब दासी के सर में मस्सा देखा यह देखकर राजमाता की आंखों में आंसू आ गई और उनकी आंखों से आंसू की बूंद दासी की पीठ पर जा गिरी तो दासी ने पूछा आप क्यों रो रही है राजमाता तब उन्होंने कहा तेरी जैसी मेरी भी बेटी है जिसके सर में मस्सा है वैसा ही तेरे सिर में भी है यह देखकर आंखों में आंसू आ गए तब दासी बोली मैं ही हूं आपकी बेटी दशा माता के प्रकोप से मेरे बुरे दिन चल रहे हैं इसीलिए यहां चली आई तब माता बोली बेटी तूने यह सारी बात हमसे क्यों छुपाई तब दासी बोली मां मैं यदि आपको सब बता देती तो मेरी बुरे दिन कैसे कटते और आज मैं दशा माता का व्रत करूंगी और अपनी गलतियों की क्षमा याचना करूंगी

तब राजमाता ने बेटी से पूछा हमारे जमाई राजा कहां है बेटी बोली इसी गांव में तेली के घर में काम कर रहे हैं तब गांव में उनकी खोज कराई गई और उन्हें महल लाया गया फिर उन्हें स्नान कराया गया नए वस्त्र पहने अच्छे-अच्छे पकवान बनवाकर भोजन कराया अब दशा माता के आशीर्वाद से नल राजा और दमयंती के अच्छे दिन लौट आए कुछ दिन वही बताने के बाद अपने राज्य वापस जाने को कहा फिर पिता ने खूब सारा धन लाभ लश्कर हीरे जवाहरात का धातु घोड़े आदि देकर विदा किया जब दोनों लोग अपने राज्य को वापस लौट रहे थे उसको वही नदी पड़ी जहां वे मछलियों को पका रहे थे और वह वापस नदी में चली गई और चील ने दुपट्टा मारकर भोजन जमीन गिरा दिया तब राजा ने रानी से कहा तुम सोच रही होगी उस वक्त कि मैं अकेले ही भोजन कर लिया होगा परंतु चील सारा भोजन गिरा कर सारा भोजन खराब कर दिया था तब रानी बोली आपने भी यही सोचा होगा कि मैं सारी मछलियां अकेले ही खाली पर ऐसा नहीं था वह तो जीवित होकर दोबारा नदी में चली गई थी

चलते-चलते जब राजा की बहन का गांव आया तो राजा ने अपनी बहन के यहां खबर भेजी तब राजा की बहन ने अपने सैनिक से पूछा कि वह कैसे हाल से आ रहे हैं तो सैनिक ने कहा वह बहुत अच्छे हाल में है और उनके साथ हाथी घोड़े लाब लश्कर हैं यह सुनकर राजा की बहन मोतियों की थाली सजाकर लाई तब दमयंती ने धरती माता से प्रार्थना की और कहा कि है माता आज मेरी अमानत मुझे वापस दे दो यह कहकर उस जगह को खुदा जहां पर खाना गड़ा था तब खोदने पर खाना तो नहीं मिला उसकी जगह है हीरे जवाहरात सोने चांदी निकले फिर जब बहन जो मोतियों का हर लाई थी उसमें वह हीरे जवाहरात डालकर वे आगे बढ़ गए वहां से चलकर राजा अपने मित्र के यहां पहुंचे तो मित्र ने उनका पहले की तरह ही सम्मान किया और आदर सत्कार के साथ भोजन कराया रात्रि विश्राम के लिए उन्हें इस कक्ष में सुलाया जहां वह मोरनी उस हर को निकल रही थी उसके बाद आधी रात के बाद वही मोरनी उस हार को उगल रही थी तब राजा ने दमयंती को जगाकर दिखाया तब दमयंती अपने पति के दोस्त की पत्नी को जगाकर कहती है आपका वह हार हमने नहीं चुराया था वह हर तो यह खूंटी निकल रही थी आपने सोचा होगा कि हमने चुरा लिया है

दूसरे दिन प्रात काल नित्य कार्यों से निवृत होकर वहां से भी चल दिए जब नल राजा अपने मित्र भील राजा के यहां पहुंचे और अपने पुत्रों को मांगा तो भील राजा ने उनके पुत्रों को देने से इनकार कर दिया तब गांव के लोगों ने भील राजा को समझा बूझकर राजा नल के पुत्रों को वापस दिलाया नल दंपति अपने बच्चों को लेकर अपनी राजधानी के निकट पहुंचे तो नगर वासियों ने जब राजा नल को लाब लश्कर के साथ आते देखा तो सभी ने बहुत प्रसन्न होकर उनका स्वागत किया तथा गाजे बाजे के साथ उनको उनके महल पहुंचा राजा पहले जैसा था हो गया नल दमयंती पर दशा माता ने जैसे प्रकोप किया वैसे किसी पर न करें और जैसे उन पर कृपा की वैसे सब पर करें